स्थानीय सांस्कृतिक विशेषताओं की पहचान जरूरी: प्रो. बद्री नारायण
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन पर जेएनसीयू में हुआ मंथन
राजीव शंकर चतुर्वेदी
पूर्वांचल राज्य ब्यूरो
बलिया। जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय में मंगलवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर संवाद का आयोजन किया गया। 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मूल बिन्दु: क्रियान्वयन एवं शैक्षणिक परिवर्तन' विषय पर बोलते हुए मुख्य वक्ता प्रो. बद्री नारायण, सदस्य, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने कहा कि एनइपी अभी प्रक्रिया के रूप में है, जिसमें आवश्यकता के अनुसार बदलाव किया जायेगा। कहा कि एनइपी कोई पिंजड़ा नहीं है, बल्कि एक खुला आसमान है, जिसमें विद्यार्थी अपने पंखों के हिसाब से उड़ान भर सकता है। कहा कि नौकर होने से मालिक होना बेहतर है कि हम मालिक बनें, एनइपी यह अवसर प्रदान करती है। व्यावसायिक पाठ्यक्रम के स्वरूप पर उन्होंने बताया कि स्थानीय सांस्कृतिक, सामाजिक विशेषताओं को पहचानने और उन पर शोध करने की आवश्यकता है। कहा कि बलिया की आत्मा को तलाशने के लिए गाँव के स्तर पर शोध करने की, यहाँ के पारिवारिक जीवन के मूल्यों को समझने की जरूरत है। कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में स्थानीय परंपरा के महत्त्व को स्वीकारना होगा। घाघ और भड्डरी की कहावतों, भिखारी ठाकुर की लोककला आदि को पाठ्यक्रम में स्थान दिया जा सकता है।
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कुलपति प्रो. संजीत कुमार गुप्ता ने कहा कि विश्वविद्यालय अपने क्षेत्र की सामाजिक- सांस्कृतिक विशेषताओं की समझ विकसित कर पा रहे हैं या नहीं। यह आत्ममंथन का विषय है। स्थानीय विशेषताओं, स्थानीय ज्ञान की पहचान एवं संरक्षण के लिए शिक्षकों को अनुसंधान करना व कराना होगा। प्रो. बी.एन. पाण्डेय, प्राचार्य, एस.सी. कालेज एवं प्रो. आर.एन. मिश्र, प्राचार्य, टी.डी. कालेज ने संवाद में सहभाग करते हुए एनइपी के कियान्वयन की व्यावहारिक समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट किया। डाॅ. रजनी चौबे, डाॅ. अजय चौबे आदि प्राध्यापकों एवं शोधार्थियों ने भी अपने विचार साझा किए। इस अवसर पर 9 आंगनबाड़ी केंद्रों की कार्यकर्त्रियों को किट भी वितरित किए गए। संचालन डाॅ. स्मिता ने किया। इस अवसर पर परिसर के प्राध्यापक एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।
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