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त्यौहारो में चढ़ बढ़ कर पटाखे फोड़ना दे सकता वीभत्स घटना को दावत


पूर्वांचल राज्य ब्यूरो महराजगंज

घुघली पल्टू मिश्रा

स्कंद पुराण में दिवाली की परंपरा का वर्णन है, जहां लोग अपने दिवंगत पूर्वजों के लिए मार्ग रोशन करने के लिए अपने हाथों में उल्का (आग की लकड़ियां) रखते थे।दिवाली पर पटाखे क्यों नहीं फोड़ने चाहिए?

 पटाखों में पोटेशियम नाइट्रेट, सल्फर, चारकोल, बेरियम नाइट्रेट, स्ट्रोंटियम नाइट्रेट और कॉपर कंपाउंड्स जैसे केमिकल्स का इस्तेमाल होता है। पटाखों से कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें भी निकलती हैं। इनसे कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

पटाखों की वजह से पर्यावरण को तो नुकसान होता ही है, सेहत को भी काफी खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। पटाखों का धुआं तो सेहत को नुकसान पहुंचाता ही है, इन्हें जलाते समय दुर्घटना होने का खतरा भी रहता है। ऐसी कई घटनाएं सुनने को भी काफी मिलती है। पटाखे से जलने पर तुरंत और सही उपचार करना बेहद जरूरी है, ताकि घाव गंभीर न हो।बता दें, 'Green' पटाखों के अलावा किसी भी अन्य पटाखों के मैन्युफैक्चरिंग, स्टोरेज, सेल्स और यूज करने पर बैन लगा दिया गया है।पटाखों का दिवाली से जुड़ाव कम से कम 16वीं सदी से है। हालांकि, यह नादर बंधुओं द्वारा शिवकाशी में स्थापित की गई फैक्ट्री ही थी जिसने भारत की आजादी के बाद पटाखा उद्योग को गति दी और लोगों को पटाखे उपलब्ध कराए इसलिए, पटाखे फोड़ना विस्फोट का एक उदाहरण है।पटाखों के बिना दिवाली मनाने के कई तरीके हैं। दीये और मोमबत्तियाँ जलाना, पर्यावरण के अनुकूल रंगोली बनाना और परिवार और दोस्तों के साथ मिठाइयाँ बाँटना, ये सभी एक सार्थक उत्सव बनाते हैं।

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