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हरि तालिका तीज का आध्यात्मिक महत्व


पूर्वांचल राज्य ब्यूरो ,जौनपुर

 चंदन जायसवाल

जौनपुर lहरतालिका तीज व्रत हिंदू धर्म में मनाये जाने वालें व्रतों में से सबसे महत्वपूर्ण एक व्रत है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है। इस व्रत को कुमारी और सौभाग्यवती दोनों स्त्रियां कर सकती हैं। हरतालिका तीज व्रत बहुत ही कठोर व्रत है इसे निराहार और निर्जला बिना कुछ पीए किया जाता है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था। हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को सुंदर सुशील वर की प्राप्ति होती है। 

भगवान् शिव एवं माता पार्वती की कहानी

हमारे धार्मिक ग्रन्थों में वर्णन मिलता है कि हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला एक बहुत ही पवित्र और धार्मिक पर्व है। एक पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए बहुत ही कठोर तपस्या हिमालय पर गंगा नदी के तट पर भूखे-प्यासे रहकर तपस्या कर रही थी। माता पार्वती की इतनी घोर तपस्या देख कर उनके पिता हिमालय को बहुत चिंता हो रही थी। जिस कारण वह बहुत दुखी हुए। संयोगवस एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए मगर जब माता पार्वती को इस बात का ज्ञान हुआ कि नारद जी विष्णु जी से विवाह का प्रस्ताव लेकर आए हैं तो उन्हें बहुत दुख हुआ और वो विलाप करने लगी। एक सखी के पूछने पर उन्होंने बताया कि, वे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए इतनी कठोर तप कर रही हैं न कि विष्णु जी को। इसके बाद अपनी सखी की सलाह पर माता पार्वती वन में चली गई और भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। इसी समय माता पार्वती ने भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की भक्ति में मग्न होकर बिना कुछ खाए पिए रात्रि जागरण किया। माता पार्वती के कठोर तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।


तभी से अच्छे पति की कामना और पति की दीर्घायु के लिए कुंवारी कन्या और सुहागन स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

पूजा विधि हरतालिका तीज का व्रत प्रदोष काल में करना चाहिए, यह समय रात और दिन के मिलने का समय होता है

हरतालिका व्रत के पूजन के लिए भगवान् शिव माता पार्वती और भगवान् गणेश की बालू, रेत या काली मिट्टी की प्रतिमा हाथ से बनाकर पूजा करनी चाहिए। 

पूजा करने की जगह को फूलों से सजा कर एका काष्ठ की छोटी चौकी रखें उस पर केले के पत्ते से तोरण बना कर भगवान् शिव माता पार्वती एवं गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें। 

इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए सुहाग की वस्तु चौकी पर रखकर माता को चढ़ाए तत्पश्चात अपनी सास के चरण स्पर्श करके सभी सुहाना की वस्तु को किसी योग्य ब्राह्मण या ब्राहमणी को दान कर देना चाहिए। 

इस व्रत में भगवान् भोले शंकर को धोती और गमछा चढा़ने की परंपरा है। 

पूरे विधि विधान से पूजा करने के बाद माता पार्वती एवं भगवान् शिव की कथा का श्रवण करना चाहिए और रात्रि जागरण करना चाहिए सुबह माता पार्वती की आरती करने के बाद सिंदूर चढा़ए। ककडी हलवे का भोग लगा कर अपने व्रत का पारण करें। 

हरतालिका व्रत को करने का नियम इस व्रत को करने का नियम बहुत ही कठोर है इस व्रत को करने वाली स्त्री अन्न,जल ग्रहण नहीं कर सकती है। 

हरतालिका व्रत को एक बार रख लेने पर उसे छोडा नही जाता है। प्रत्येक वर्ष पूरे विधि विधान से इसको करना पड़ता है।                                              

हरतालिका तीज का व्रत रखने वाली स्त्री को दिन रात जागरण (जागना) करना पड़ता है क्योंकि माता पार्वती ने इसी तप के कारण भगवान् शिव को प्राप्त किया था। 


डिस्क्लेमर :- उपरोक्त जानकारी कथा, प्रवचन, पंचाग, गुगल,तथा बडे़ ढूढो द्वारा दी गयी जानकारी पर आधारित है।

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