https://www.purvanchalrajya.com/

सहज योग से संभव है स्वयं की आलोचना को अंगीकार करना।

यदि हम सदैव‌ दूसरों की आलोचना करते हैं उनकी बुराई देखते हैं तो निसंदेह हम अच्छे की श्रेणी में नहीं आयेंगे।   पंरतु यदि हम स्वयं की आलोचना करते हैं स्वयं की बुराई और गलतियां देख पाते हैं तो हम अच्छे हैं क्योंकि हमें अपनी बुराईयों का आभास हो रहा है।  यदि कोई और हमारी आलोचना कर रहा है, हममें‌ बुराई देख रहा है तो यह भी हमारे लिए हीतकर  है क्योंकि यह हमें सुधरने के लिए प्रेरित करता है, 

कबीरदास जी ने कहा है :-

'निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय, 

बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय'


आलोचना शब्द 'लुच' धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है देखना।   यह देखना सामान्य भाव से देखना नहीं है ब्लकि विशेष दृष्टिकोण से देखना है अतः यह सकारात्मक है। । 


स्वयं की आलोचना यदि हम अंतर्अवलोकन‌ विधि से करें तो‌ हमें अपने अंदर की बुराईयां दिखाई देगी और हम यह देखकर आश्चर्यचकित रह जायेंगे कि हमने अपने अंदर कितने शत्रु पाल‌ रखे हैं जो हमारे आत्मिक उत्थान में अवरोध पैदा कर हमारा सर्वनाश कर रहे हैं क्योंकि आत्मिक उत्थान के बगैर प्रगति नहीं हो सकती है। 


सहज योग ध्यान पद्धति से हम यह अनुभव पाते हैं कि जब हमारा चित्त दूसरों पर जाता है तब हम अपने से दूर हो जाते हैं।  दूसरों के गुणों की अवहेलना कर सिर्फ उनमें बुराई तलाशते‌ है तब हम अपने साथ अन्यों के रिश्ते समाप्त करने का प्रयास करते हैं। 


हमने देखा है कि हमारी स्वयं की आलोचना हमें कुंठित व शक्तिहीन कर देती है, हम अपनी ही नजरों में गिरने लगते हैं और आत्मविश्वास खोने लगते हैं। 


अत: आत्मशक्ति को बढ़ाना आवश्यक है।  हमारे  भीतर का आलोचक हमारी आत्मशक्ति से मिलकर ही हमारा मार्ग प्रशस्त कर सकता है।   सहज योग माध्यम से ध्यान‌ धारणा हमारी आत्मशक्ति को विकसित करती है जिससे साक्षी भाव प्राप्त कर हम अपने प्रति आ रही आलोचना को सहजता से देख पाते हैं और स्वयं के दोषों का अवलोकन करना सीख लेते हैं।  


सहज योग के नियमित ध्यान से हमें स्वच्छ मानसिकता प्राप्त होती है और नकारात्मक विचार सकारात्मकता में परिवर्तित हो जाते हैं।  हम सहज ध्यान के द्वारा अपनी बुराईयों, बाधाओं, दुष्प्रभावों व दुषित विचारों को अपने अंदर से निकाल पाते है।  आलोचना का सकारात्मक चैतन्य सहज योग के माध्यम से आसानी से ग्राह्य होता है।  हम अपनी गलतियों को छुपाते नहीं, उसे स्वीकार कर अपने उत्थान क्षेत्र को प्रशस्त करते हैं।   ऐसा करने से हमारी काबिलियत बढ़ती है और परिवार और समाज के प्रति अपने दायित्व निभा पाते हैं। 


आलोचना  का उद्देश्य स्वयं का या  दूसरों का अपमान नहीं है बल्कि एक श्रेष्ठ गुण है अपनी कमियों और त्रुटियों को दूर करने का।  

चलिए सहज योग ध्यान को अपनाते हैं। *सहज योग निशुल्क भी है और आसान‌ भी*सहजयोग ध्यान केंद्र की जानकारी हेतु टोल फ्री नंबर 1800 2700 800 वेबसाइट www.sahajayoga.org.in

Post a Comment

0 Comments