जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे सूक्ष्म तंत्र में सबसे पहला जो चक्र है वह मूलाधार चक्र है। इस पर श्री गणेश जी का स्थान है। यह चक्र हमारी कुंडलिनी शक्ति जो त्रिकोणकार अस्थि में है उसके भी नीचे स्थित रहता है ।यदि हमारा मूलाधार चक्र खराब है, कमजोर है तो कुंडलीनि शक्ति आसानी से नहीं उठती ।इस चक्र को हमें स्वयं ही साफ करना होता है। मूलाधार चक्र की चार पंखुड़ियां होती हैं और प्रत्येक पंखुड़ी के कुछ गुण होते हैं। यह गुण हमें श्री गणेश जी प्रदान करते हैं। *मूलाधार चक्र की पहली पंखुड़ी से हमें गणेश जी शांति ,संतुलन और अबोधिता के लिए संवेदना प्रदान करते* *हैं ।दूसरी पंखुड़ी से हमें अपनी बुराइयों पर ,काम वासना लोभ पर नियंत्रण प्रदान करते हैं ।हमारे आसपास जो दुष्ट आत्माएं हैं उन पर हमें विजय प्रदान करते* *हैं। तीसरी पंखुड़ी से हमें परमात्मा के प्रति विनम्रता का भाव जागृत होता है ।हमें बुद्धि विवेक और शास्त्रों और वेदों का ज्ञान प्रदान करते हैं। चौथी पंखुड़ी हमें* *निर्भरता, निडरता, सामूहिक चेतना प्रदान करती है ।तो हमने देखा हमारे सभी चक्रों का आधार और नींव गणेश तत्व पर है ।*
यदि हम श्री गणेश जी की पूजा कर रहे हैं मतलब हम हमारे अंदर की अबोधिता की पूजा कर रहे हैं ,जो मंगलमय है, अबोध है ।अबोधिता जो हमारा चरित्र है जिसके साथ हमने जन्म लिया। अबोधिता प्रेम का स्रोत है। छोटे बच्चों को जब हम प्रेम से नाचते खेलते देखेंगे तो हमारे अंदर भी वही प्रेम का अनुभव होगा ।यदि हम अपनी अबोधिता का सम्मान नहीं करेंगे तो कभी प्रेममयी व्यक्ति नहीं बन पाएंगे ।अगर श्री गणेश जी हमारे अंदर होंगे तो हम शिशु सम अबोध बन जाएंगे ।जैसे बच्चे हर वक्त हर परिस्थिति में खुश रहते हैं, खिलखिलाते हैं हम भी वही आनंद हर वक्त महसूस कर सकते हैं। एक आत्म साक्षात्कारी बच्चा एक व्यस्क की तुलना में अधिक समझदार होता है। हमें अपने अंदर की अबोधिता या गणेश तत्व के प्रति सतर्क रहना चाहिए। हमारा चित्त कहां जा रहा है ??क्या सोच रहा है? क्या कोई ठगी या चालाकियां करने का प्रयत्न कर रहा है?? यह सब ध्यान के प्रयत्न से ही आएगा ।श्री गणेश की शक्ति अबोधिता और पवित्रता है ।यह हमारे अंदर रहती है बशर्ते कि हम स्वयं इसे नष्ट न करें ।वास्तव में एक बच्चा अबोध पैदा होता है परंतु यदि मां वैसी होती है तो इस समय बच्चा सीख लेता है। यदि पिता वैसा है तो बच्चा भी वैसा ही बनता है। परंतु बाद में इसका असर होता है चाहे वह मां हो या पिता सारा समाज ही पतन की ओर जा रहा है ।हम सब यह स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। इसके अनेक कारण है *।किस प्रकार हम चलते हैं कपड़े पहनते हैं, उठते बैठते हैं दूसरों को प्रभावित करने के लिए कैसा व्यवहार करते हैं। यह सब हमारे मूलाधार चक्र को, हमारी पवित्रता को प्रभावित करता है।खराब मूलाधार चक्र* *मतलब अबोधिता पवित्रता में खराबी विकृत मानसिकता और पतोन्मुख समाज ।*
हमें अपने मूलाधार चक्र को, गणेश तत्व को मजबूत करना है, क्योंकि यह सबसे नाजुक और सबसे शक्तिशाली चक्र है ।गणेश तत्व खराब होने से बहुत सारी लाइलाज बीमारियां हो जाती हैं जैसे--- प्रोस्टेट की प्रॉब्लम, पाइल्स ,एड्स ,यूट्रेस संबंधी समस्याएं निसंतान होना आदि ,स्मरण शक्ति और बुद्धि विवेक चला जाता है। *ईसा मसीह ने भी कहा है--- हमारी आंखें भी पवित्र होनी चाहिए व्याभिविचार नहीं होना चाहिए* । घास पर चलें, पृथ्वी तत्व पर बैठे, गणेश अथर्वशीर्ष का पठन करें। इस प्रकार हम अपने मूलाधार चक्र को स्वच्छ रख सकते हैं। एक प्रकार से हमें गणेश तत्व को दृढ़ करने के लिए तपस्या करनी चाहिए ,क्योंकि *गणेश तत्व ही ,गणेश की शक्ति ही सभी चक्रों की नींव है पवित्रता का आधार है।*
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