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हम क्रोध क्यों करते हैं??? सहज योग से जानिए कारण और समाधान

 हम क्रोध क्यों करते हैं??? 

 सहज योग से जानिए कारण और समाधान 

आज के समय में हर मनुष्य कुछ ना कुछ खोज रहा है। क्या खोज रहा है शायद वह स्वयं नहीं जानता ।अंदर से हर मनुष्य अशांत है ।संतोष हमारे अंदर नहीं है। हम किसी भी चीज से संतुष्ट नहीं है। मनुष्य किसी भी बात को बर्दाश्त भी नहीं कर पाता ।किसी भी बात को सहन करने की क्षमता हमारे अंदर नहीं है तो हमें जान लेना चाहिए कि ऐसा क्यों है ??यह परेशानी और चिंता का कारण क्या है ???


इसका कारण हमारा मन है और यह हमारे ही द्वारा बनाई गई संस्था है ।जब हम प्रतिक्रिया करते हैं अपने अहंकार के कारण किसी से गुस्सा हो, किसी को नुकसान पहुंचाना चाहे तो ऐसे में हमारे अंदर विचारों का तूफान उठ जाता है और उसी के बुलबुले अशांति और क्रोध के रूप में हमारे अंदर उठने लगते हैं ।इसके अलावा जब हम प्रतिक्रिया करते हैं हमारे संस्कारों से बल्कि कुसंस्कारों से तो बहुत सारे विचार हमारे अंदर इकट्ठा हो जाते हैं और इस तरह की प्रतिक्रियाओं से मन नाम की संस्था बन जाती है । मन के अनुसार चलने से हम वास्तविकता से दूर रह जाते हैं ।जब तक हम मन से परे नहीं जाएंगे हमारे अंदर शांति प्रस्थापित नहीं होगी ।इस तरह की अशांति या अशांत मन में ही क्रोध इकट्ठा होने लगता है। श्री कृष्ण ने भी कहा है क्रोध सबसे बड़ा षडरिपु है। पहले व्यक्ति क्रोध करता है फिर उसे पर पछतावा करता है कि हमने क्रोध क्यों किया ।जब व्यक्ति को क्रोध आता है तो वह अपने आप में नहीं रहता जो उसके मन में आता है वह बोल देता है। वह बातें भी बोल देता है जिनका कोई अर्थ नहीं होता ।तो क्या हमने सोचा है कि हम क्रोध क्यों करते हैं और इस पर कैसे नियंत्रित किया जा सकता है ।हम अलग-अलग तरह से क्रोध करते हैं। कुछ लोग किसी व्यक्ति विशेष पर क्रोध करते हैं। कुछ लोग समाज से ,कुछ परिवार पर क्रोध करते हैं ।जो * व्यक्ति क्रोध करता है उसकी और हमारी दृष्टि अत्यंत ही शालीन होनी चाहिए जिससे उसका क्रोध ठंडा हो जाए ।* हमारे हृदय में बाई और शिवजी का स्थान है ।यदि हमारा हृदय साफ और स्वच्छ है और हम शिव तत्व में स्थापित हैं तो कोई भी हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकता। हम पूर्णतया सुरक्षित रहते हैं ।इसलिए हमें शिव जी का ध्यान करना चाहिए । जब हम क्रोध करते हैं तो हमारा हृदय चक्र पकड़ जाता है और क्रोध के बाद पश्चाताप करने से बाईं विशुद्धि पकड़ती है और हमें एंजाइना जैसी बीमारी हो सकती है। लेकिन किसी के समझाने से भी हम क्रोध करना नहीं छोड़ पाए तो फिर क्या करें????


श्री माताजी ने बताया कि यदि हम आईने में स्वयं को देखकर क्रोध करें ,स्वयं को देखें कि मेरे जैसा महा मूर्ख कोई नहीं है जो सब कुछ जानते हुए भी क्रोध करता है और अपना नुकसान करता है तो शायद हमारा क्रोध काम हो सकता है।किसी भी बात पर, चीज पर प्रतिक्रिया करना या उसे नापसंद करना हमारे अहंकार को दर्शाता है। ऐसा इसलिए हम करते हैं क्योंकि हम उस व्यक्ति की भावना को नहीं समझ पाए क्योंकि हमारे अंदर शिव तत्व नहीं है। जैसे श्री कृष्ण को सुदामा ने चावल प्रेम से दिए थे और उन्होंने भी  प्रेम से उसे स्वीकार किया था , श्री कृष्ण का हृदय सुदामा के लिए प्रेम से परिपूर्ण था।वैसा ही प्रेम हमारे हृदय में होना चाहिए। यदि हम शिव तत्व में स्थापित हो जाए तो हमारे अंदर के सूक्ष्म से सूक्ष्म भाव भी जागृत हो जाएंगे ।मतलब हमारे बिना कहे वह भाव दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाएगा तो हम आत्म तत्व और प्रेम तत्व से क्रोध शांत कर सकते हैं ।इसके अलावा जब हमारा लीवर बहुत गर्म होता है तो हमें ज्यादा क्रोध आता है । क्रोध का वास्तविक कारण लीवर की गर्मी है ।लिवर हमारा गरम तब होता है जब हमारी पिंगला नाड़ी अधिक सक्रिय होती है। हमारा खान-पान सही नहीं रहता ।इसके लिए हमें लीवर पर आइस पैक या बर्फ रखनी चाहिए। पैर के तलवे पर राइट साइड में बर्फ से रखना चाहिए ।नमक पानी करते समय बर्फ के पानी में राइट पैर डालकर ध्यान करना चाहिए तो ठंडक आ जाएगी। क्रोध का इलाज लिवर को ठीक और स्वस्थ रखना ही है। इसके लिए हम लीवर के कूलिंग मंत्र और लीवर पर श्री गणेश अथर्वशीर्ष भी बोल सकते हैं ।


 या देवी सर्वभूतेषु शांति रूपेण *संस्थिता 

 नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः* 


इस मंत्र को कहने से भी क्रोध शांत होता है। यह सब तब घटित होगा जब हम सहज योग ध्यान करेंगे क्योंकि जब हमारी कुंडलीनि जागृत होगी तभी यह उपाय कार्यान्वित होंगे।

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