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भारत विश्व का गुरु, मिथिलेशनंदिनी शरण महाराज श्री रामचंद्र के पदचिन्हों पर चलकर एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण संभव: शंकरपूरी महाराज

म.गा.का.वि. के दर्शनशास्त्र विभाग एवं विश्व संवाद केंद्र काशी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित चतुर्दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी


पूर्वांचल राज्य ब्यूरो, वाराणसी (अभिषेक दुबे की रिपोर्ट)

वाराणसी। अन्नपूर्णा मठ प्रमुख शंकर पूरी महाराज ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री रामचंद्र के बाल्यकाल की काकभुशुंडि लीला की व्याख्या करते हुए उनके चरित्रकाल में सभी प्राणियों को समान भाव से देखने एवं सभी को एकरूप से सम्मान देने के सरल व्यवहार और विषमता रहित रामराज्य की चर्चा की। उन्होंने अपने उद्बोधन में प्रभु राम की बाल्यावस्था से लेकर युवावस्था के कई लीलाओं का वर्णन किया। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में दर्शन शास्त्र विभाग एवं विश्व संवाद केंद्र, काशी के संयुक्त तत्वावधान में 16 फरवरी को काशी शब्दोत्सव के चतुर्दिवासीय राष्ट्रीय संगोष्ठी रखी गई।

 गांधी अध्ययन पीठ के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम का विषय 'रामराज्य विकसित भारत' रखा गया।

विशिष्ठ अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. अनूप वशिष्ठ ने दैहिक दैविक भौतिक तापा राम राज्य नहीं काहुहीं व्यापा , सब नर करहीं परस्पर प्रीति चलहीं स्वधर्म नीरत श्रुति नीति की व्याख्या को ध्येय मानते हुए प्रेम तत्व को आपसी जुड़ाव का कारण बताते हुए कहा अगर हमें यशस्वी बनना है तो हमें अपनी परम्परा में धंसना होगा। हमारी जड़ें तभी मजबूत होंगी जब हम अपनी परंपराओं से जुड़ेंगे। उसके लिए हमें राम को जानना होगा कृष्ण को पहचानना होगा।

मुख्य वक्ता सिद्धपीठ श्री हनुमाननिवास;अयोध्या के पीठाधीश्वर पूज्य  मिथिलेशनंदिनीशरण  महाराज  ने कहा कि शब्दोत्सव एक संगोष्ठी नहीं, राष्ट्र सनातन की अवधारणा है। काशी हुआ जा सकता है काशी को जिया जा सकता है किंतु इसे समझा नहीं जा सकता। मनुष्य की मुक्ति दुर्लभ ही बनी रही। काशी ने शब्द मात्र से मुक्ति देने की गारंटी ली। भगवान शिव इस भारत के अदिपुरुष हैं। भारत विश्वगुरू है इसका अभिप्राय यह है कि भारत विश्व में गुरु है विश्व का गुरु नहीं है । भारत विश्व गुरु इसलिए है क्योंकि भारत स्वयं को गौरवपूर्ण समझकर दूसरों को हीनभावना से नहीं देखता। जबतक यह अशेष विश्व परमात्मा को अपने अंदर विद्यमान नहीं करेगा तबतक वह कुंठित रहेगा। निष्पक्ष बात तब पूर्ण होती है जब वेद, पुराण एवं संतों से भी मत लिया जाए। जिन्हें उजाले की ओर जाना है उन्हें पूर्व दिशा में देखना होगा।

 कार्यक्रम का शुभारंभ महात्माओं के करकमलों द्वारा महापुरुषों के स्मृति चिन्हों पर माल्यार्पण एवं दीपप्रज्वलन द्वारा हुआ। स्वागत भाषण प्रो. राजेश मिश्रा, संचालन प्रो. अंबारिश राय एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो. सर्वनाद ने किया। कार्यक्रम में अन्य विभागों के विभागाध्यक्ष ,प्रोफेसर एवं विद्यार्थी भारी मात्रा में मौजूद रहे। जिन्होंने अपनी जिज्ञासाओं के उत्तर हेतु महात्माओं से बातचीत की।

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