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सैकड़ों कठिनाइयों को पार कर संजय श्रीवास्तव, रवि सोनी ने 2‌ नवंबर 1990 की कारसेवा में लिया था हिस्सा



पूर्वांचल राज्य ब्यूरो, सुल्तानपुर

सुल्तानपुर। अयोध्या में 2 नवंबर 1990 के दिन जिस गली में अमर शहीद कारसेवक कोठारी बंधुओं की हत्या पुलिस ने की थी उसी के बगल वाली गली में हो रही फायरिंग के प्रत्यक्ष गवाह रहे कारसेवक संजय श्रीवास्तव , रवि सोनी ने समाजसेवी पत्रकार डी पी गुप्ता एडवोकेट को अपनी आपबीती बताते हुए कहा कि वे लोग 30 अक्टूबर 1990 की रात्रि लगभग 12 बजे बढ़ैयाबीर में डा राजीव श्रीवास्तव वाली गली से आगे बढ़ते हुए नदी के किनारे‌ स्थित एक पुराने मंदिर में इकट्ठा‌ हुए थे। कुल 11-12 कारसेवक थे। जिनमें संजय सिंह, संजय त्रिपाठी ,नीरज श्रीवास्तव सीटू, महेंद्र भटनागर, रज्जन भाई चित्रा स्टूडियो आदि कई लोग‌ शामिल थे बाकी का नाम वे याद नहीं कर पाये। वे सब रात में ही रेलवे का पुल पारकर रेलवे लाइन पकड़ कर पांचोपीरन होते हुए आगे बढ़ रहे थे कि गांव के कुत्तों ने भौंकना शुरू कर दिया और गांव के कई लोग लाठी डंडे लेकर लालटेन और टार्च की रोशनी में हम लोगों को खोजने लगे। सब लोग वहां पर लगे बड़े बड़े सरपत के बीच कर छिप कर घंटों बैठे रहे। बाद में गांव वाले वापस चले गए तो माहौल शांत होने पर सब लोग रेलवे लाइन पकड़ कर द्वारिका गंज पहुंचे, जहां एक पंडित जी ने अपने घर के हाते में सबको शरण दिया और चाय नाश्ता आदि कराया और रात रुकने को कहा परंतु वे सब रूके नहीं और चलते चले गए ‌। रास्ते में एक जगह रेलवे लाइन के पास कोई रास्ता जैसा मिला जहां पर पुलिस फोर्स तैनात थी । पुलिस वालों ने सभी कारसेवकों को देखकर दौड़ा लिया। सभी लोग अंधाधुध भागने लगे सामने एक बड़ी सी झील जैसी तालाब दिखाई दिया तो सब लोग भागते हुए उसी के अंदर करीब चार पांच सौ मीटर तक चले गए, तब जाकर पुलिस वालों ने पीछा छोड़ा। तालाब के अंदर किसी के पैरों में कांटे चुभ गए तो कई लोगों को पैरों में जोंक चिपक गए थे। तालाब के बाहर आकर सभी लोगों ने जोंक को निकाला। चलते-चलते सामने एक नहर मिल गई तो वहां गांव के लड़कों ने लाठी के सहारे उन लोगों को नहर पार कराया। इस दौरान सभी बिछड़ गए थे। राजकिशोर जायसवाल रज्जन भाई ने अपनी आपबीती बताई कि वे सिर्फ खजुराहट तक पहुंचे थे पर आगे नहीं जा पाये और वापस लौटना पड़ा। उधर संजय श्रीवास्तव रवि सोनी, नीरज श्रीवास्तव के साथ भीगे कपड़े में ही आगे बढ़ते रहे। कौन सा गांव कहां आ रहा है किसी को कुछ मालूम ही नहीं चल पा रहा था। इसी दौरान एक गांव में वे पहुंचे तो वहां के‌ लोगों ने लोगों बड़ी सेवा की । वहां की महिलाओं ने चरण धो कर तिलक लगाए और आरती किया और भोजन करा कर विदाई के वक्त रास्ते के लिए कुछ पैसे भी दिए तथा आगे जाने का रास्ता भी बताया। आगे बढ़ते समय उन्हें महाराष्ट्र और गुजरात के कारसेवकों की टोलिया भी मिल गई। सब लोग एक साथ होकर जब दर्शननगर इलाके में पहुंचे तो‌ वहां तैनात पुलिसवालों ने सभी को दौड़ा लिया जो जिधर रास्ता पाया भाग खड़ा हुआ। सब लोग बिछड़ गए परन्तु संजय श्रीवास्तव,नीरज श्रीवास्तव सीटू और रवि सोनी एक साथ रहे और खेतों के रास्ते देवकली पहुंच गए वहां पर कुछ लोग चाय बिस्कुट बांट रहे थे। चाय पी कर वहां से गली गली होते हुए सभी लोग अयोध्या कनक भवन तक पहुंचे। कनक भवन के पास विश्व हिंदू परिषद के 20 - 25 कारसेवकों की टोली मिल गई जिनके साथ सब लोग हो लिए और कर सेवा के लिए आगे बढ़ने लगे। आगे पुलिस द्वारा लाठी चार्ज और गोली चलाई जा रही थी। बगल की गली में ही कोठारी बंधुओं की हत्या हुई थी। ऐसे में सब लोग जिस गली से आगे बढ़ रहे थे वहीं पर एक मकान की छत पर गन मशीन लिए एक पुलिस वाला बैठा था और उसने सब लोगों को आगे बढ़ने से रोका फिर भी कारसेवक आगे बढ़ने लगे। ऐसे में उसने फायरिंग शुरू कर दी तब जाकर कारसेवक पीछे हटे। पुलिसवालों को बंदूक लेकर आता देख‌ सब लोग भाग कर कनक भवन पहुंच गए वहां पर एक मिठाई की दुकान वाले ने सबको अपनी दुकान के अंदर‌ शरण दिया और शटर बंद कर दिया। करीब 5-6 घंटे तक सब लोग उसी दुकान में चुपचाप बैठे रहे बाहर पुलिस कारसेवकों को ढूंढती रही। दुकानदार ने अपनी दुकान के सभी मिठाइयों को कारसेवकों को खाने के लिए दे दिया। चार-पांच घंटा बीतने के बाद बाहर से किसी ने आवाज दिया कि पुलिस वाले अब चले गए हैं तब जाकर दुकानदार ने दुकान खोला और सभी लोगों को बाहर निकाला । वहां से निकल कारसेवक कनक भवन में चले गए और वहां छिपकर बैठे रहे। भागते हुए बिछड़ गए नीरज श्रीवास्तव सीटू भाई वहीं पर फिर टोली से मिल गये। मामला शांत होता देख सब लोग फिर आगे पड़े और गली में पहुंचे ही थे कि वहां पुलिस मौजूद थी और उसने दौड़ा लिया ऐसे में सब लोग भागते भागते एक सिन्हा जी के मकान तक पहुंच गए सिन्हा जी ने सब लोगों को शरण दी । उनकी माताजी ने सब लोगों को बड़े प्यार से खाना खिलाया और रात रुकने को कहा, इसी दौरान वहां पुलिस पहुंच गई और घर की तलाशी लेने लगी तो उनकी माताजी ने कारसेवकों को स्टोर रूम में छुपा कर बाहर से ताला लगा दिया और काफी देर बाद जब पुलिस चली गई तो ताला खोलकर सब लोगों को निकाला और बगल वाले घर में एक चौरसिया जी के घर में छुपाया जहां सब लोग रात भर छिपे रहे । चौरसिया जी के परिवार ने रात भर सभी कारसेवकों की‌ बड़ी सेवा किया । बहुत ही डर का माहौल था। पुलिस वाले घर-घर की तलाशी ले रहे थे जिन घरों में कारसेवकों पकड़े जाते थे तो उन घर वालों को भी नहीं बख्शते थे। किसी तरह सुबह होने पर सब लोग वहां से निकल कर छिपते छिपाते देवकली पहुंचे और वहां नीरज श्रीवास्तव सीटू के मामा के घर रुक गए । वहां पर भी रात में पुलिस आ गई और कार सेवकों की तलाश करने लगी। सब लोग छिपे रहे और सुबह होते सब लोगों जाने लगे तो‌ उनके मामा जी ने एक साइकिल दिया। सब लोग साइकिल लेकर छुपाते छुपाते अवध विश्वविद्यालय के पास तक पहुंचे ही थे तो वहां पर पुलिस फोर्स लगी थी जिसने सब लोगों को देख लिया और दौड़ा कर सब लोगों की पिटाई कर दी। जिससे सीटू भाई और रवि सोनी के पैर में काफी चोटें लग गई। उसके बाद वहां से भाग कर वे सब भरत कुंड होते हुए छिपते छुपाते कभी पैदल कभी साईकिल से सुल्तानपुर चौथे दिन पहुंचे। सभी लोगों को अपने-अपने घरों में काफी डांट फटकार लगी। सुल्तानपुर में कई दिनों तक कारसेवकों का अयोध्या से वापसी का आना होता रहा। इस दौरान सभी घरों की महिलाएं दो चार लोगों का अतिरिक्त भोजन बनाकर देती थी और मोहल्ले के युवा सब इकट्ठा कर रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों पर जाकर कारसेवकों को देते थे। इसी तरह की भोजन सेवा बस स्टेशन पर भी आने वालों कारसेवकों के लिए काफी लोग कर रहे थे।

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