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बांसडीह ब्लॉक के बहुआरा स्थित है मां पचेव देवी का मंदिर

शिल्पकला के हिसाब से यह प्रतिमा लगभग 350 वर्ष पुरानी है



पूर्वांचल राज्य ब्यूरो, बलिया (ब्यूरो प्रभारी राजीव शंकर चतुर्वेदी)

बलिया। जनपद स्थित "बांसडीह" विधानसभा का एक गांव बहुआरा है जो कि हल्दी कस्बा से 6 किलोमीटर उत्तर और "सहतवार" कस्बा से 5 किलोमीटर दक्षिण में हल्दी - सहतवार मार्ग पर स्थित है। इसका पड़ोसी गांव बिगही है जो इसके दक्षिण सीमा से लगा हुआ है। बहुआरा गांव सहतवार थाना के अंतर्गत आता है। इस गांव के पूर्व दिशा में श्री पचेव देवी का मंदिर है जिसकी ख्याति सर्वत्र फैली हुई है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त बिना किसी लालच, द्वेष, ईर्ष्या के शुद्ध मन से देवी की आराधना करता है और देवी से जो कुछ भी मांगता है वह अवश्य मिलता है। देवी के नाम पर ही आसपास के क्षेत्र को पचेव कहां जाता है पचेवदेवी का मेला म‌ई के महीने में लगता है जोकि बहुत प्रसिद्ध था लेकिन किन्हीं कारणवश अब लुप्त प्राय हो चुका है। पूर्वकाल में यहां वाल्मीकी आश्रम के होने का सांस्कृतिक अवशेष जिले की सदर तहसील के पचेव गांव में स्थित माता सीता पचेव मंदिर है। प्राचीन मंदिर में आदमकद माता सीता की दो छोटे बच्चों कुश और लव के साथ लाल बलुआ पत्थर की बनी प्रतिमा स्थापित है। इस गांव के निकट ही बिगही, बहुआरा, सीताकुण्ड गांव है। स्थानीय लोक परंपराएं भी प्रमाणित करती हैं कि सीता ने अपना निर्वासन काल यहां स्थित वाल्मीकि आश्रम पर बिताया था। पचेव गांव में जो माता मंदिर है, यहां स्थानीय महिलाएं दाल भरी पूरी चढ़ाती हैं। जिसे बहू के आने पर विशेष रूप से घरों में बनता है। सूचना विभाग बलिया द्वारा प्रकाशित वार्षिक पत्रिकाओं में भी उल्लेख है कि यहां पर वाल्मिकी आश्रम था। जहां सीता जी ने कुश-लव को जन्म दिया था। इसके कारण ही बहुआरा (बहू का निवास स्थान) नाम पड़ा।

सीताकुण्ड में माता सीता करती थीं स्नान



सीताकुण्ड गाँव के बारे में बताया जाता है कि छोटी सरयू-तमसा नदी के खादर से बने, इस कुण्ड में सीता जी स्नान करने आती थीं। इन अभिलेखीय और परिस्थितिजन्य भौगोलिक साक्ष्यों के अतिरिक्त यह भी उल्लेखनीय है कि जिस वाल्मीकी आश्रम के जंगल में माता सीता जी को रामानुज लक्ष्मण जी ने छोड़ा था। वह तत्कालीन अयोध्या और मिथिला राज्य की सीमा पर स्थित है। अयोध्या राज परिवार का कोई भी व्यक्ति गर्भवती महारानी सीता को वन में छोड़े जाने के पक्ष में नहीं था। किन्तु एक राजा की मर्यादा स्थापित करने के लिए श्रीराम ने सीता जी को जंगल में छुड़वाया था। पूर्व काल में गंडकी नदी अयोध्या और मिथिला राज्य की सीमा का विभाजन करती थी। गंडकी नदी का प्राचीन प्रवाह मार्ग इस स्थान से मात्र बीस किमी दूर था। वर्तमान समय में गंडकी नदी यहां से लगभग पचास किमी पूर्व दिशा में छपरा बिहार में है।

बलिया के पचेव गांव में सीता ने दिया था लव-कुश को जन्म

वाल्मीकीय रामायण, रघुवंश महाकाव्य, बलिया गजेटियर और स्थानीय लेखक, साहित्यकारों की पुस्तकों, लोक परंपराओं एवं श्रुतियों के विवेचन के उपरांत यह तथ्य मिलता है कि सीता जी ने जिले के बिगहीं, सोनवानी व बहुआरा के समीप स्थित पचेव के वाल्मीकी आश्रम में अपने पुत्रों कुश-लव को जन्म दिया था। सीता के दोनों तरफ दो बालकों कुश और लव की मूर्ति बनी है। यह तीनों प्रतिमाएं एक ही पत्थर में बनीं हैं। शिल्पकला के हिसाब से यह प्रतिमा लगभग 300-350 वर्ष पुरानी है। यहां सीता नवमी के अवसर पर महीने भर का मेला लगता था, जो स्थानीय कारणों से बंद हो गया है। यह स्थान आज भी बियाबान जगह पर खेतों के बीच में स्थित है।

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