उत्पादन के अनुरूप बिक्री कम होने के कारण कई आर्म्स मेनुफैक्चरर बंद कर चुके हैं कारोबार
वर्ष 1967 तक गन फैक्ट्री में काम करते थे 12 साै कारीगर, 12352 गन निर्माण प्रति वर्ष था लक्ष्य
वर्तमान में कायर्रत तीन कारखाना में 40 कारीगर बना रहे 716 गन
33 लाइसेंसी गन फैक्ट्रियां हो गई बंद
2019-20 में 689
2020-21 में 698
2022 में 522
तो वर्ष 2023 के अगस्त तक करीब 350 गन फैक्ट्रियां पकड़ी जा चुकी हैं।
पूर्वांचल राज्य ब्यूरो, मुंगेर (संतोष सहाय की रिपोर्ट)
मुंगेर। “द सिटी ऑफ गन’ के नाम से मशहूर मुंगेर अब “इलीगल गन फैक्ट्री सिटी’ बनता जा रहा है। यहां की वैध और लाइसेंसी गन फैक्ट्रियां बंदी के कगार पर पहुंच चुकी हैं जबकि अवैध गन फैक्ट्रियां जिले के कई इलाकों में कुकुरमुत्ते की तरह चल रही हैं। बीते दिनों मुंगेर के दौरे पर पहुंचे तत्कालीन उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन ने यहां की बंद हो रही गन फैक्ट्रियों का निरीक्षण कर उसे पुराने में रूप में लाने की बात कही थी। लेकिन मंत्री के इस दावे के डेढ़ वर्ष बाद भी कहीं कोई असर होता नहीं दिख रहा है। जबकि जिले के कारीगर हथियार निर्माण में इस कदर दक्ष है कि देश भर में सर्वोत्तम क्वालिटी व मानक के स्टैण्डर्ड के अनुरूप डबल बैरल के साथ-साथ अन्य अत्याधुनिक हथियार का निर्माण बखूखी कर लेते हैं।
हमने वैध और अवैध गन फैक्ट्रियों पर तुलनात्मक अध्ययन किया, जिसमें यह पाया कि मुंगेर के 36 वैध गन फैक्ट्रियों में से 17 पूरी तरह बंद हो चुके हैं तो 15 बंदी के कगार पर खड़े हैं। मतलब इन ईकाईयों में अब बंदूक का निर्माण नही होता है। उत्पादन के अनुरूप गन की बिक्री नहीं होने से अधिकांश आर्म्स मेनुफैक्चरर अपना कारोबार समेट चुके हैं।
1956 में आर्म्स एक्ट में हुए बदलाव के बाद मुंगेर में कुल 36 आर्म्स मेनुफैक्चरर कंपनियां आर्म्स बनाती थी। तब यहां एक हजार से ज्यादा मजदूर आर्म्स निर्माण में जुटे थे। उस वक्त 12352 आर्म्स निर्माण का टारगेट था। तब लाइसेंस प्रक्रिया सरल रहने के कारण बाजार में आर्म्स की डिमांड अधिक थी। जानकार बताते है कि आर्म्स मेनुफैक्चरर डिमांड के अनुरुप आर्म्स की आपूर्ति नहीं कर पाते थे। लेकिन 1990 के बाद आर्म्स लाइसेंस की प्रक्रिया जटिल होने के कारण बाजार मंे आर्म्स की डिमांड घटती चली गई। उत्पादन के अनुरूप आर्म्स की बिक्री नहीं होने के कारण अधिकांश आर्म्स मेनुफैक्चरर कंपनियांे ने अपना कारोबार समेट लिया। वर्तमान में मात्र तीन आर्म्स मेनुफैक्चरर कंपनियां आर्म्स निर्माण कर रही है। इन तीनों को साल भर में मात्र 716 आर्म्स निर्माण का टारगेट दिया गया है। फिलहाल मात्र एक सौ मजदूर आर्म्स निर्माण का काम कर रहे हैं।
तीन आर्म्स मेनुफैक्चरर कंपनियों को मात्र 716 गन निर्माण का लाइसेंस
फाइजर एंड संस कंपनी को 300, रॉयल आर्म्स कंपनी को 300 और बैद्यनाथ आर्म्स कंपनी को 116 आर्म्स निर्माण का लाइसेंस मिला है। फाइजर एंड संस कंपनी के सौरभ सिंह बताते हैं कि तीनों कंपनी के कारीगर एन 19 स्टील के बैरल से उत्तम क्वालिटी के आर्म्स का निर्माण लक्ष्य के अनुरूप कर रहे हैं। परंतु उत्पादित आर्म्स की बिक्री नहीं हो पा रही है। जबकि बैद्यनाथ आर्म्स कंपनी के संजय कुमार बताते हैं कि उन लोगों ने पीएजी गन का निर्माण किया है और अबतक 65 गन की बिक्री भी कर चुके हैं। पी कैलिबर के नाम से एक कंपनी का गठन कर रिवाल्वर व पिस्टल निर्माण के लिए लाइसेंस की मांग कर रहे हैं।
आर्म्स मेनुफैक्चरर कंपनियों ने खुद लाइसेंस कराया रद्द
जानकार बताते हैं उत्पादन के अनुरूप आर्म्स की बिक्री नहीं होने पर कई अार्म्स मेनुफैक्चरर कंपनियों ने खुद लाइसेंस रद्द करा लिया। प्रतिवर्ष 1859 हथियार निर्माण का कोटा रखने वाले दास एंड कंपनी के मालिक ने कुछ वर्ष पूर्व आर्म्स मजिस्ट्रेट को लिख कर दे दिया कि उत्पादन के अनुरूप बिक्री नहीं हो रही है, इसलिए उनका स्टॉक क्लीयर कराकर लाइसेंस रद्द कर दिया जाए।
लाइसेंसी गन फैक्ट्रियों की खराब सेहत के बीच जिले में हथियारों के अवैध निर्माण की बाढ़ सी आ गई। मुफस्सिल का बरदह, बाकरपुर, चुरंबा, मिन्नतनगर, बिंदवाड़ा का शर्मा टोली, मकसुसपुर, हजरतगंज बाड़ा, बरियारपुर-हवेली खड़गपुर के पड़ाही व जंगली क्षेत्र में, गंगा के दियारा इलाके में नाव तक पर अवैध हथियार बनाई जाती है। जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल होते है। महिलाओं व बच्चों का फाइलिंग करना है।
आदि अवैध निर्माण के लिए देशभर में बदनाम हैं। और इससे होने वाली अवैध कमाई का हाल यह है कि कई लोग ईडी के जांच या फिर रडार पर हैं। ऐसे में सवाल तो है कि आखिर क्या कारण है कि सरकार से लाईसेंसधारी बंदूक फैक्ट्रियां बंद होती जा रही है तो अवैध निर्माण करने वाले दिनो दिन फल फूल रहे हैं।
आर्म्स एक्ट 2016 में 75 दिन में आवेदन के निष्पादन का प्रावधान आर्म्स लाइसेंस की जटिल प्रक्रिया के कारण सिर्फ बिहार में 01 लाख से ज्यादा आर्म्स लाइसेंस के आवेदन पेंडिंग हैं। जबकि समूचे देश ंकीबात करें तो 10 लाख से ज्यादा आर्म्स लाइसेंस के आवेदन पेंडिंग हैं। अधिकांश आवेदन डीएम स्तर पर पेंडिंग रहता है। जबकि आर्म्स एक्ट 2016 में स्पष्ट है कि आर्म्स लाइसेंस के आवेदन को 75 दिन के अंदर यह स्पष्ट करते हुए निष्पादन करें कि लाइसेंस निर्गत किया जाना है या नहीं। परंतु बिहार में पिछले कई सालों से आर्म्स के लाइसेंस निर्गत ही नहीं हो रहे हैं।
वर्ष 1990 के बाद बढ़ी जटिलता उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार ने 01 लाख आर्म्स लाइसेंस निर्गत किया था। उस समय बाजार की डिमांड को देखते हुए 01 लाख से ज्यादा आर्म्स का निर्माण गन फैक्ट्री में हुआ था। यही नहीं बाजार में डिमांड अधिक रहने के कारण 04 हजार की गन उस समय 20 हजार की बिक्री होती थी। इसके पूर्व तक लाइसेंस आराम से मिल जाता था, अधिकांश लोग शौकिया तौर पर आर्म्स रखते थे। परंतु वर्ष 1990 के बाद आर्म्स लाइसेंस में जटिलता आई और बाजार में आर्म्स की डिमांड घटती चली गई।
वर्ष 1925 में बंगाल के नवाब मीर कासिम के मंत्री गुगरीन खान ने ब्रिटिश हुकुमत से लोहा लेने की खातिर मुंगेर में बंदूक निर्माण की आधारशीला रखी थी। आजादी मिलने के बाद वर्ष 1962 में सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से बंदूक निर्माण कंपनियां मंडल कारा में शिफ्ट हो गई व 1980 में सभी कंपनियां किला परिसर स्थित एक हीं कैंपस में शिफ्ट हो गई। तब के वर्षों में दन कंपनियों में 12 सौ कारीगर रोजगार पाते थे, लेकिन लाईसेंसिंग प्रक्रिया की जटिलता के कारण बंदूक का बाजार ठप हो गया व धीरे धीरे 33 इकाईयां बंद हो गई। हालांकि 90 के दशक में इंडस्ट्रियलिस्ट नवीन जिंदल ने इन कंपनियों का दौरा कर आर्थिक के साथ सरकारी मदद दिलवाने का भी आश्वासन दिया था लेकिन वह महज कोरा आश्वासन हीं रहा।
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