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जीवन के संघर्ष में गुड़ की मिठास घोल रहीं बलिया की बेटियां


 


पूर्वांचल राज्य ब्यूरो, बलिया ( ब्यूरो प्रभारी राजीव शंकर चतुर्वेदी की रिपोर्ट)

बलिया। ये मत कहो खुदा से मेरी मुश्किलें बढ़ी है, ये मुश्किलों से कह दो मेरा हौसला बड़ा है' इस पंक्ति को चरितार्थ कर रही है बलिया की दो बेटियां पूजा और स्वीटी। रिश्ते में बुआ-भतीजी ये बेटियां गुड़ की चाय बेचकर अपने जीवन में आयी पहाड़ जैसी बाधाओं को हंसते हुए पार करने में जुटी हैं। शहर से करीब आठ किमी दूर बांसडीहरोड इलाके के मनियारी जसांव गांव की पूजा सिंह ने कुंवर सिंह कॉलेज से बीए किया। आगे की पढ़ाई की सोचती कि दो साल पहले 

सिर से मां-बाप का उठा साया तो चाय की दुकान खोल लीं बुआ-भतीजी...

बुआ पूजा और भतीजी स्वीटी की पढ़ाई अब भी है जारी...

मां का बीमारी से निधन हो गया। कुछ का दिनों बाद पिता की भी मौत हो गई। माता-पिता के जाने के बाद घर में अकेली पूजा पर भतीजी (भाई की बेटी) स्वीटी के पालन-पोषण व पढ़ाई की जिम्मेदारी आ गई। स्वीटी के बचपन में ही उसके माता-पिता चार घंटे की दुकानदारी, फिर का साया सिर से उठ गया था उनकी मौत एक कार एक्सिडेंट में हो गई थी घर में अकेली बुआ-भतीजी के सामने दो जून की रोटी का संकट आ खड़ा हुआ। करीब एक महीने पहले पूजा ने निर्णय लिया कि वह इस चुनौती से हार नहीं मानेगी। कम पूंजी मैं चाय की दुकान खोलने का आइडिया आया। जिले में गुड़ के चाय की दुकान एक भी नहीं थी, लिहाजा उसने यही धंधा शुरू करने का फैसला कर लिया। दोनों ने शहर के जगदीशपुर तिराहे के पास गुड़ की चाय की एक छोटी सी दुकान खोल ली पूजा की मानें तो एक दिन में करीब सात लीटर दूध के चाय की बिक्री हो जाती है।

पढ़ाई-लिखाई पूजा व स्वीटी दोनों ने कुंवर सिंह कॉलेज से इतिहास, राजनीति शाख व सैन्य विज्ञान विषय से बीए तक की पढ़ाई की है। दोनों की दुकान रोजाना सुबह सात बजे खुल जाती है। चार घंटे तक दुकान चलाने के बाद 11 बजे तक दोनों गांव लौटजाती हैं। इसके बाद पढ़ाई-लिखाई का दौर शुरू होता है। पूजा गांव पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती है, जबकि स्वीटी कम्प्यूटर सीखती हैं।

आत्मनिर्भर भारत के मंत्र को बनाया सूत्र...

पूजा कहती हैं, लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। लोग क्या कहेंगे यह सोचने लगे तो कुछ नहीं होने वाला। कहा कि मुझे यह संदेश देना है कि अन्य लड़कियां भी शर्म को त्याग कर अपने पैरों पर खड़ी हो स्वीटी बहुत छोटी थी. तभी इसके माता-पिता कार एक्सिडेंट में खत्म हो गए थे। दो साल पहले मेरे माता-पिता का भी निधन हो गया निर्णय लिया कि किसी के आगे हाथ फैलाने से बेहतर है, कुछ किया जाए। दुकान खोल ली मिट्टी के पुरखे में दस व रुपये की चाय से ठीक-ठाक आय हो जाती है।

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