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छठ पूजा अथवा छठ पर्व का महत्व



*हिन्दू धर्म का प्रमुख पर्व: श्रीमती विजय प्रभा मिश्रा (ब्राहमण समाज की राष्ट्रीय अध्यक्ष)*

छठ पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिंदू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोक पर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। उत्तराखंड का उत्तरायण पर्व हो या केरल का ओणम, कर्नाटक की रथसप्तमी हो या बिहार का छठ पर्व, सभी इसके द्योतक हैं कि भारत मूलत: सूर्य संस्कृति के उपासकों का देश है तथा बारह महीनों के तीज-त्योहार सूर्य के संवत्सर चक्र के अनुसार मनाए जाते है।दीपावली के एक सप्ताह पश्चात बिहार में छठ का पर्व मनाया जाता है। एक दिन व रात तक समूचा बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश गंगा के तट पर बसा प्रतीत होता है। इस दिन सूर्यदेव की उपासना व उन्हें अघ्र्य दिया जाता है। भारत के बिहार प्रदेश का सर्वाधिक प्रचलित एवं पावन पर्व है सूर्यषष्ठी। यह पर्व मुख्यत: भगवान सूर्य का व्रत है। इस व्रत में सर्वतोभावेन सूर्य की पूजा की जाती है।छठ बिहार का प्रमुख त्योहार है। छठ का त्योहार भगवान सूर्य को धरती पर धन-धान्य की प्रचुरता के लिए धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है। लोग अपनी विशेष इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी इस पर्व को मनाते हैं। पर्व का आयोजन मुख्यत: गंगा के तट पर होता है और कुछ गांवों में जहां पर गंगा नहीं पहुंच पाती है, वहां पर महिलाएं छोटे तालाबों अथवा पोखरों के किनारे ही धूमधाम से इस पर्व को मनाती हैं।इस तिथि को सूर्य के साथ ही षष्ठी देवी की भी पूजा होती है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी भी है।इस त्योहार पर न तो किसी मंदिर में पूजा हेतु जाया जाता।पूरे दिन में उपवास रखा जाता है तथा श्रद्धालु देर शाम तक पूजा के बाद ही उपवास तोड़ते हैं। प्रसाद एवं अर्पण की वस्तुएं चावल का हलुआ, पूड़ी तथा केला, ये ही इस दिन की विशेष भोजन सामग्री हैं। अर्पण के पश्चात इन्हीं भोज्य पदार्थों को मित्रों एवं संबंधियों में बांटा जाता है। लोग बड़ी ही श्रद्धा से इसे खाते हैं।दूसरे दिन चौबीस घंटे का उपवास प्रारंभ होता है। दिनभर प्रसाद बनाने की तैयारी होती है तथा संध्या को भक्तगण छठ मैया का गीत गाते हुए नदी तट, जलकुंड या तालाब पर पहुंच जाते हैं। वहां पर अस्त होते हुए सूर्य को उपर्युक्त प्रसाद का अर्पण किया जाता है। रात्रि के समय श्रद्धालु घर लौटते हैं, जहां पर एक अन्य महोत्सव प्रतीक्षारत होता है। गन्ने की टहनियों से बने एक छत्र के नीचे दीपयुक्त मिट्टी के हाथी व प्रसाद से भरे बर्तन रखे जाते हैं। श्रद्धालु उपवास के समय जल भी ग्रहण नहीं करते हैं। सूर्योदय से ठीक पहले भक्तगण नदी तट की ओर पुन: छठ मैया के गीत गाते हुए प्रस्थान करते हैं।

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