विनियमितिकरण की आस में शिक्षक की टूटी सांस, सड़क दुर्घटना में हुई मौत
राजीव शंकर चतुर्वेदी/ डा सुनील कुमार ओझा
पूर्वांचल राज्य ब्यूरो
बलिया। अनुदानित स्ववित्तपोषित शिक्षक के रूप में 2009 से ही मथुरा पी जी कालेज रसड़ा में समाज शास्त्र विषय में अपनी सेवा दे रहे असिस्टेंट प्रोफेसर चंदन कुमार गुप्ता का सड़क दुर्घटना में आकस्मिक निधन हो गया। इस अकल्पनीय घटना से अनुदानित स्ववित्तपोषित शिक्षक परिवार आहत एवम किंकर्तव्यविमूढ़ है। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें, और उनके परिवार को इस असहनीय वेदना को सहन करने की शक्ति प्रदान करें। शिक्षक साथी डा चंदन के पिता पहले ही स्वर्गवासी हो गए इस आस में की मेरा बेटा एडेड डिग्री कालेज में सहायक आचार्य के पद पर कार्यरत है। अब घर की माली हालत सुधरेगी सपना तो सपना ही रह गया। दो पुत्रियां एक पुत्र, मां पत्नी जीवन रूपी नौका का खेवनहार तो बीच में ही छोड़ कर चला गया पत्नी जार बेजार हो रही है। बच्चो की स्कूल फीस बाकी है अब कौन भेरेगा पुत्रियों की शादी कैसे होगी। पिता की पुण्य तिथि इसी श्राद्ध के महीने थी अब कौन करेगा। दशहरे में बच्चो को कौन घुमाएगा। प्रकाश का पर्व दीपावली आने से पहले घर का दीपक बुझ गया दिन के उजाले में ही जीवन के सफर में अमावस की काली रात आ गई। ये पीड़ा भरे शब्द उस पत्नी के है जो एक उम्मीद के साथ जी रही थी की सबका साथ सबका विकास वाली राम राज्य की सरकार है। विनियमितिकरण के बाद जीवन की गाड़ी पटरी पर आ जायेगी। ध्रुव तारे और अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लेने वाला घर से गाड़ी पर निकला तो, फिर कर, घर नही आया आई तो लाश
कहने को लोक कल्याणकारी सरकारें है, लोक कहा देखती है, वो तो वोट देखती है, विश्व गुरु बनाने की बाट दिखाने वालों के ,शब्दों की बाजीगरी में जो यूथ विश्व की सबसे बड़ी डिग्री लेकर जब इस व्यवस्था से जुड़ा तो जुड़ा रहा गया उसमे ऐसा उलझा की खुद और परिवार के जिंदगी की रह कभी सुलझी ही नही। अनुदानित महाविद्यालय शिक्षक संघ के संगठन से बात करने पर जिम्मेदार लोगो ने बताया कि मित्र डा चंदन एक बानगी है। यही हाल 331 अनुदानित महाविद्यालय में स्व वित्त पोषित शिक्षक 3000 शिक्षको की यही हालत है। अब बहुत से शिक्षक साथी विनियमितिकरण की उम्मीद में आज सभी 45 से 60 वर्ष की उम्र के बीच है। जिनके मां बाप बीमार है खुद बीपी और शुगर के पेशेंट है बच्चे बड़े होकर शादी के योग्य हो गए है। इकाई अंक में वेतन होने के कारण न ठीक से दवाई और न पढ़ाई हो पा रही है। प्रदेश की सत्ता में एक संत बैठे है। आज शिक्षक अपने विनियमितिकरण की आस की बाट महाराज से लगाए हुए है, कभी हमारे दिन भी बहुरेंगे। इसी उम्र में न जाने कितनों की सांसे टूट चुकी है, आगे कितनों की टूटेगी कुछ कहा नहीं जा सकता है। दूसरो के जीवन में उजाला करने वाला गुरु आज खुद जीवन के गहरे अंधकार में डूबा है।
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