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वाराणसी तारापुर टिकरी में मना श्री कृष्ण पूजा _

  

पूर्वांचल राज्य ब्यूरो अमित पाठक।

वाराणसी सहज योग आश्रम में बड़े धूमधाम से मनाया गया श्री कृष्ण पूजा। सहज योग कि संस्थापिका परम पूज्य माता श्री निर्मला देवी का श्री कृष्ण स्वरूप में पूजन अर्चन हुआ मां ने कृष्ण स्वरूप के बारे में विस्तृत वर्णन भी किया है जो इस प्रकार हैं। योगियों के ईश्वर" श्री कृष्ण "और निर्लिप्तता की शक्ति


जहां श्री कृष्ण रहते थे वह स्थान एक आध्यात्मिकता का स्थान है ।उन दिनों परिवहन का कोई साधन नहीं था ।लेकिन उन्होंने बहुत ही खूबसूरती से सारी भूमि को चैतन्यित किया है। श्री कृष्णा एक बच्चे की तरह है और हर जगह खुशी का ,आनंद का माहौल बनाना चाहते थे। श्री कृष्ण यह दिखाना चाहते थे की आध्यात्मिकता गंभीर नहीं है ।यह लीला है, यह एक खेल है। श्री कृष्ण के विचार बहुत उचित थे उन्हें यह दिखाना था कि संसार एक माया है ।उनकी विधि अत्यंत ही साधारण और हल्की-फुल्की थी ।श्री कृष्ण ने अपनी सारी शक्तियों को स्त्री रूप में जन्म लेने दिया ।उनकी 16000 पत्नियां ही उनकी शक्तियां थी। उन्होंने उन स्त्रियों को किसी राजा की कैद से निकलकर उनसे विवाह किया था ।उनकी 16 कलाएं थी। इसी तरह उनकी पांच पत्नियां थी जो  पंच तत्व हैं ।


 वह बहुत ही निर्लिप्त ,निर्मोही थे। उनकी निर्लिप्तता की बहुत सारी कहानियां श्री माताजी ने बताई है। एक बार श्री कृष्ण की पत्नियों ने कहा कि उन्हें किसी संत की सेवा करने जाना है। लेकिन नदी उफान पर थी तो श्री कृष्ण ने कहा कि नदी से बोलो की श्री कृष्ण ब्रह्मचारी हैं। ऐसा कहते ही नदी उतर गई । संत की सेवा और खाना खिलाकर जब वे वापस आईं तो नदी फिर से उफान पर थी तो संत ने कहा कि बोलो संत ने कुछ खाया नहीं है व्रत किया है। ऐसा कहते ही नदी नीचे आ गई । कहानी का सार यह है कि जो लोग इस ऊंचाई तक पहुंच चुके हैं वह खाकर भी कुछ नहीं खाते ,विवाहित होते हुए भी ब्रह्मचारी हैं ।यह एक ऐसी अवस्था है जिसमें आप पूरी तरह से निर्लिप्त और अलग हो चुके हैं ।जो भी काम हम कर रहे हैं जो जीवन हम जी रहे हैं उसके प्रति हम लगाव महसूस नहीं करते। इस अवस्था में हम बहुत सारे कार्य बिना थकान के बिना कर्ता भाव के कर लेते हैं । इस अवस्था को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले हमें यह देखना चाहिए कि हम कितनी बार मैं या मेरा शब्द का प्रयोग करते हैं। जब हम बहुत ज्यादा मैं शब्द का उपयोग करते हैं तो हम  निर्लिप्त नहीं रह पाते । जीवन पर्यंत श्री कृष्ण का संदेश था--- पूर्ण निर्लिप्तता। युद्ध में भी वे अर्जुन के सारथी बने थे जब अर्जुन अपने सगे संबंधियों ,गुरुजनों का वध नहीं कर पा रहे थे तो उन्होंने कहा जो अधर्मी है क्रूर है धर्म के विरोध में है उसका वध होना ही चाहिए ।तुम उन्हें मारो या ना मारो वह मरे हुए ही हैं क्योंकि उन्होंने इतने अपराध किए हैं ।युद्ध भूमि में भी वह निर्लिप्तता की बात समझा रहे थे ।उन्होंने कहा आत्मज्ञान प्राप्त करो जो आत्म साक्षात्कार से प्राप्त होता है। लेकिन लोगों ने ज्ञान का मतलब किताबी ज्ञान समझा है। इसी प्रकार कर्म को भी लोगों ने सही नहीं समझा है। कर्म करना मतलब जो भी कार्य हम कर रहे हैं वह करके परमात्मा के श्री चरणों में छोड़ दें। जब तक हम यह सोचते हैं कि हम कर रहे हैं तो अहम भाव और मैं की भावना रहती है ।हम अकर्म में नहीं स्थापित हो पाते ।


श्री कृष्ण को समझने के लिए हमें सूक्ष्म होना पड़ेगा। श्री कृष्ण बहुत ही शरारती ,शिशु सम आचरण ,मधुर और सुंदर है। वह हमें विश्वास और विवेक की शक्ति देते हैं ।वह हमें निर्णय अलिप्तता ,नेतृत्व , माधुर्य की शक्ति देते हैं ।वह सहज सामूहिकता को शक्ति देते हैं ।संपर्क और समझाने की तथा समृद्धि की शक्ति देते हैं। वह सभी संबंधों को शुद्ध करते हैं। नारी की लाज की रक्षक है तथा पांच इंद्रियों के रथ को चलाते हैं और वह ही योगियों के ईश्वर हैं।

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