पूर्वांचल राज्य ब्यूरो ,जौनपुर
चंदन जायसवाल
जौनपुर शाहगंज
क्षेत्र के बड़ागांव में बुधवार को सैयद इम्तियाज हुसैन के अज़ाखाने से 10 मोहर्रम का ऐतिहासिक ताजिए का जुलूस बरामद किया गया।
जुलूस का नेतृत्व सैयद अबूज़र आब्दी द्वारा किया गया। यह जुलूस अपने प्राचीन मार्ग से भ्रमण करता हुआ। गन्तव्य तक पहुंच कर शाह कुशल संपन्न किया गया।
जुलूस के दौरान ज़ायरीनो ने जंजीर का मातम पेश किया।
10 मोहर्रम के ऐतिहासिक तारीख में हजरत इमाम हुसैन को शहीद करने के बाद उनकी लाश के सिर को एक नेजे पर रख कर कर्बला के मैदान से दमिश्क की तरफ यजीद को भेजा गया था।
पैगंबर-ए इस्लाम मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन को पूरे आल समेत प्यासा व भूखा रख कर शहीद किया गया था।
यजीद ने सल्तनत की खातिर इस्लाम के उसूलों को मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी और इमाम हुसैन ने शहादत देकर इस्लाम के उसूलों को जिन्दा रखा।
कर्बला की लड़ाई हकीकत में सच व झूठ की लड़ाई थी।
ये मानवता, लोकतंत्र व समानता की लड़ाई थी।
इस्लाम के मानने वालों की बहुसंख्या मोहम्मद साहब के नवासे, अली के बेटे इमाम हुसैन के साथ थी और अय्याश व जालिम बादशाह यजीद ने अपने कबीले बनी उमय्या की फौजी व माली ताकत के बल पर बादशाहत हासिल की थी।
जनता ऐसे जालिम व अय्याश को अपना खलीफा मानने को तैयार नहीं थी और 10 मोहरम को इमाम हुसैन के पूरे परिवार के साथ कर्बला के मैदान में निर्मम हत्या करवा दी गई।
इमाम हुसैन का यह बलिदान केवल इस्लाम के मानने वालों के लिए नहीं है यह पूरी इंसानियत के लिए है
अय्याश व जालिम बादशाह यजीद को मलिक बिन अश्तर की बेटी रेहाना ने 1 नवंबर ईसवी सन् 683 को अपने छूपे खंजर से नाच करते हुए मार दिया था। यजीद उस वक्त 36 वर्ष का था रेहाना ने यह काम करके इतिहास में अपना नाम लिखवा लिया। क्या आज का मुसलमान इमाम हुसैन के बताए हुए रास्ते, मानवता लोकतंत्र व समानता के उसूलों पर चल रहा है।
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