https://www.purvanchalrajya.com/

कई साल से पैदा की गई नीत‍िगत बीमारी है पराली

सरकार की नाकामी के ल‍िए क‍िसानों को दंड क्यों...?



पूर्वांचल राज्य ब्यूरो,महराजगंज (घुघली संवाददाता पल्टू मिश्रा की रिपोर्ट)

घुघली/महराजगंज। महराजगंज प‍िछले कई दशको के दौरान धान की खेती का दायरा अब तक आठ गुना बढ़ा चुका है। सरकार तथा कृष‍ि वैज्ञान‍िकों नें दूसरी फसलों की उपेक्षा कर स‍िर्फ धान को बढ़ावा द‍िया।अब हर‍ित क्रांति के साइड इफेक्ट दिखने लगे तो देश को भुखमरी से बाहर न‍िकालने वाले क‍िसानों को क्यों बनाया जा रहा हैविलेन?

हरित क्रांति ने तेज विकास से लेकर ठहराव और अब उससे उपजे एक बड़े संकट तक का चक्र पूरा कर लिया है। राज्य अब भू-जल संकट और खेती से मुनाफे में गिरावट के साथ-साथ पराली की समस्या का सामना भी कर रहा है। दरअसल,प‍िछले कई दशक में धान की खेती का दायरा  कई गुना बढ़ गया है। सूबे में पराली की समस्या की यही जड़ है,लेक‍िन दुर्भाग्य की बात यह है क‍ि जब देश भूख का श‍िकार था तब धान, गेहूं की पैदावार बढ़ाने के ल‍िए वैज्ञान‍िकों और सरकार की तारीफ हुई और अब जब धान एक नए संकट के साथ सामने आ रहा है तो सारी गलत‍ियों का ज‍िम्मेदार बेचारे क‍िसानों को ठहराया जा रहा है। पराली मामले पर हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पराली जलाने के लिए क‍िसानों के पास कुछ कारण होगा।


दरअसल, सरकार ने कुल उत्पादन के 80 फीसदी से लेकर 97 प्रत‍िशत तक धान को एमएसपी पर खरीदा और दूसरी फसलों की उपेक्षा की,यही कारण है कि क‍िसान दूसरी फसलें छोड़कर धान की तरफ श‍िफ्ट होते गए। क‍िसान वही करता रहा जो कृष‍ि वैज्ञानिकों ने बताया।वो उधर जाते रहे ज‍िधर उन्हें सरकार ले गई।जब तक हर‍ित क्रांत‍ि के फायदे द‍िखाई दे रहे थे तब तक तो सरकार ने अपनी पीठ थपथपाई। कृष‍ि वैज्ञान‍िकों ने अपना प्रमोशन करवाया और सरकारी ख‍िताब हास‍िल की लेक‍िन जब खामियां सामने आने लगीं तो समाधान खोजने की जगह क‍िसानों को ही मारा जाने लगा। उन पर एफआईआर की जाने लगी।ऐसी नौबत क्यों आई? 

अब तो बात क‍िसानों की जमीन जब्त करने तक आ गई है। पराली मैनेजमेंट करने में सरकारें फेल रही हैं। वैज्ञान‍िक इसका कोई सही रास्ता न‍हीं न‍िकाल पाए हैं और जमीन कुर्क करने की धमकी क‍िसानों को दी जा रही है।सवाल ये है क‍ि ऐसी नौबत क्यों आई? क्यों न उन वैज्ञान‍िकों और तत्कालीन नेताओं को दोषी माना जाए जो इसके ल‍िए असल मायने में गुनहगार के साथ इस समस्या की जड़ हैं,ज‍िन्होंने बाकी फसलों को छोड़ स‍िर्फ धान की खेती को बढ़ावा देकर पूरे राज्य को एक नए संकट में डाल द‍िया है। ताज्जुब की बात तो यह है क‍ि एक तरफ सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपने सूबे के क‍िसानों को बल‍ि का बकरा बनाने की कोश‍िश कर रही है तो दूसरी ओर पुल‍िस के जर‍िए उनका उत्पीड़न कर रही है।

सरकारी नाकामी का दंड क‍िसानों को क्यों...?

कभी अपना देश अमेर‍िका के सामने अनाज के ल‍िए ग‍िड़ग‍िड़ा रहा था।जब धान-गेहूं उगाकर क‍िसानों ने देश का पेट भरा। अब क‍िसानों को ही कुछ लोग पराली की समस्या का ज‍िम्मेदार बता रहे हैं,जबक‍ि व‍िलेन तो कोई और है, लेक‍िन सवाल यह है क‍ि सरकार के फेल‍ियर का दंड क‍िसान क्यों भुगते? किसान को सिर्फ दंड ही क्यों मिलेगा? हमेशा क‍िसान दंड का पात्र ही क्यों होता है कई के दशक से अब तक सरकारों ने क‍िसानों को धान की एमएसपी का एडिक्ट बना दिया है, दूसरी फसलें छ‍ुड़वा दी हैं तो फ‍िर सुप्रीम कोर्ट के दंड का भागी क‍िसान ही क्यों बने?

Post a Comment

0 Comments