पूर्वांचल राज्य ब्यूरो, बलिया (ब्यूरो प्रभारी राजीव शंकर चतुर्वेदी की रिपोर्ट)
बलिया। देवरिया जनपद के पैकवली कुटी से पवहारी परम्परा के 8वे गुरु,श्री श्री 108 राजराजेश्वर भगवान श्री स्वामी पौहारी जी महाराज, जो 100 वर्षों से भी अधिक समय से चली आ रही परम्परानुसार ऐतिहासिक कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिये गंगा-तमसा के पावन तट भृगुक्षेत्र जाने के क्रम में पूर प्राथमिक विद्यालय पर अपने मंडली के साथ शनिवार रात्रि विश्राम किये और रविवार सुबह अपने भक्तों, शिष्यों को उनके घरो पर दर्शन देते हुए अपने अगले पड़ाव भृगुक्षेत्र कार्तिक पुर्णिमा स्नान के लिए अपने मंडली के साथ प्रस्थान किये। पूर्व में दर्जनों की संख्या में घोड़ा, हाथी, गांय-बैल और बैलगाड़ी व सैकड़ों साधुओ के मंडली के साथ कार्तिक पूर्णिमा स्नान को स्वंय डोली में बैठकर अपने मंडली की बैलगाड़ीयो व पैदल साधुओ के साथ यात्रा करके बलिया जाने वाले श्री पवहारीजी महाराज के मंडली में बदलते जमाने के अनुसार अब साधुओ की संख्या अत्यंत ही सीमित रह गई है,वही बैलगाडी की जगह पर ट्रैक्टर-ट्राली व स्कार्पियो ने ले ली है। लेकिन अब भी पुरानी परम्परा को निभाते हुए वर्तमान पौहारि जी महाराज अपने छोटे से दल के साथ ही अपनी पैकवली स्थित मुख्य कुटी से भादोकृष्ण द्वादशी(अगस्त) से अपने जमात के साथ प्रस्थान कर जगह-जगह रात्रि विश्राम करते हुए जनपद मे पहला पड़ाव जजौली के बाद दूसरे पड़ाव के क्रम में पूर में प्रवचन,रात्रि विश्राम के बाद पालकी मे बैठ कर अपने शिष्यों भक्तों को दर्शन देते हुए अपने अगले पडाव भृगु क्षेत्र बलिया के पावन गंगा तट पर चतुर्दशी, पूर्णिमा एवं एकम को स्नान व भंडारा करने के बाद श्री पौहरी जी महाराज की मंडली अपनी पुरानी परम्परा का निर्वहन करते हुए बिहार के विभिन्न स्थानों पर जगह-जगह पड़ाव डालते हुए प्रयागराज में संगततट पर स्नान व भंडारा के उपरांत चैतरामनवमी को अपने मुख्य कुटी श्री राजराजेश्वर भगवान पैकवली धाम को वापस लौटती है। आज के भौतिक चकाचौंध मे जहाँ हर व्यक्ति तड़क-भड़क का आदि हो गया है। वहीं परम्परानुसार फलाहार पर अपना जीवन व्यतीत करने व एक दुसाला ओढने वाले पौहारी महाराज अपने सिमटते-सिकुडते मंडली के साथ आज भी सादगी पूर्ण आचरण व परम्पराओ को कुशलता पूर्वक निर्वहन की वजह से समाज मे आज भी अनुकरणीय व वंदनीय है ।
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