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माता पार्वती का ही स्वरुप है शीतला देवी



पूर्वांचल राज्य ब्यूरो, वाराणसी 

वाराणसी स्कन्दपुराण में देवी शीतला को माता पार्वती का ही स्वरुप बताया गया है। देवी शीतला की अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। जो माता शीतला की उपासना आराधना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है ।


अस्य श्रीशीतलास्तोत्रस्य महादेव ऋषि:, अनुष्टुप् छन्द:, शीतला देवता, लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्ति:, सर्व-विस्फोटकनिवृत्तये जपे विनियोगः।

इस श्रीशीतला स्तोत्र के ऋषि महादेव जी, छन्द अनुष्टुप, देवता शीतला माता, बीज लक्ष्मी जी तथा शक्ति भवानी देवी हैं. सभी प्रकार के विस्फोटक, चेचक आदि, के निवारण हेतु इस स्तोत्र का जप में विनियोग होता है।


।। शीतलाष्टक स्त्रोत।।

वन्देSहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां    शूर्पालंकृतमस्तकाम्।।

गर्दभ(गधा) पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में मार्जनी(झाड़ू) तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वन्दना करता हूँ।

वन्देSहं  शीतलां  देवीं  सर्वरोगभयापहाम्।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटकभयं महत्।।

मैं सभी प्रकार के भय तथा रोगों का नाश करने वाली उन भगवती शीतला की वन्दना करता हूँ, जिनकी शरण में जाने से विस्फोटक अर्थात चेचक का बड़े से बड़ा भय दूर हो जाता है।

शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्याहपीडित:।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति।।
यस्त्वामुदकमध्ये तु  धृत्वा पूजयते नर:।
विस्फोटकभयं  घोरं गृहे तस्य  न जायते।।

चेचक की जलन से पीड़ित जो व्यक्ति “शीतले-शीतले” – ऎसा उच्चारण करता है, उसका भयंकर विस्फोटक रोग जनित भय शीघ्र ही नष्ट हो जाता है और जो मनुष्य आपकी प्रतिमा को हाथ में लेकर जल के मध्य स्थित हो आपकी पूजा करता है, उसके घर में विस्फोटक, चेचक, रोग का भीषण भय नहीं उत्पन्न होता है।

शीतले  ज्वरदग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च।
प्रणष्टचक्षुष:   पुंसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम्।।

हे शीतले! ज्वर से संतप्त, मवाद की दुर्गन्ध से युक्त तथा विनष्ट नेत्र ज्योति वाले मनुष्य के लिए आपको ही जीवनरूपी औषधि कहा गया है।

शीतले तनुजान् रोगान्नृणां हसरि दुस्त्यजान्।
विस्फोटककविदीर्णानां   त्वमेकामृतवर्षिणी।।

 हे शीतले! मनुष्यों के शरीर में होने वाले तथा अत्यन्त कठिनाई से दूर किये जाने वाले रोगों को आप हर लेती हैं, एकमात्र आप ही विस्फोटक – रोग से विदीर्ण मनुष्यों के लिये अमृत की वर्षा करने वाली हैं।

गलगण्डग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम्।
त्वदनुध्यानमात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम्।।
न मन्त्रो नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते।
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम्।।

हे शीतले! मनुष्यों के गलगण्ड ग्रह आदि तथा और भी अन्य प्रकार के जो भीषण रोग हैं, वे आपके ध्यान मात्र से नष्ट हो जाते हैं. तथा  उस उपद्रवकारी पाप रोग की न कोई औषधि है और ना मन्त्र ही है. हे शीतले! एकमात्र आप जननी को छोड़कर (उस रोग से मुक्ति पाने के लिए) मुझे कोई दूसरा देवता नहीं दिखाई देता।

मृणालतन्तुसदृशीं   नाभिहृन्मध्यसंस्थिताम्।
यस्त्वां संचिन्तयेद्देवि तस्य मृत्युर्न जायते।।
अष्टकं शीतलादेव्या यो नर: प्रपठेत्सदा।
विस्फोटकभयं  घोरं गृहे तस्य  न जायते।।

हे देवि! जो प्राणी मृणाल – तन्तु के समान कोमल स्वभाव वाली और नाभि तथा हृदय के मध्य विराजमान रहने वाली आप भगवती का ध्यान करता है, उसकी मृत्यु नहीं होती और जो मनुष्य भगवती शीतला के इस अष्टक का नित्य पाठ करता है, उसके घर में विस्फोटक का घोर भय नहीं रहता।

श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धाभक्तिसमन्वितै:।
उपसर्गविनाशाय  परं  स्वस्त्ययनं  महत्।।

मनुष्यों को विघ्न-बाधाओं के विनाश के लिये श्रद्धा तथा भक्ति से युक्त होकर इस परम कल्याणकारी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए अथवा श्रवण (सुनना) करना चाहिए।

शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले  त्वं  जगद्धात्री  शीतलायै  नमो नम:।।

हे शीतले! आप जगत की माता हैं, हे शीतले! आप जगत के पिता हैं, हे शीतले! आप जगत का पालन करने वाली हैं, आप शीतला को बार-बार नमस्कार हैं।

रासभो   गर्दभश्चैव   खरो    वैशाखनन्दन:।
शीतलावाहनश्चैव       दूर्वाकन्दनिकृन्तन:।।
एतानि खरनामानि शीतलाग्रे तु य: पठेत्।
तस्य गेहे शिशुनां च शीतलारुड़् न जायते।।

जो व्यक्ति रासभ, गर्दभ, खर, वैशाखनन्दन, शीतला वाहन, दूर्वाकन्द –निकृन्तन –भगवती शीतला के वाहन के इन नामों का उनके समक्ष पाठ करता है, उसके घर में शीतला रोग नहीं होता है

शीतलाष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित्।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धाभक्तियुताय वै।।

इस शीतलाष्टक स्तोत्र को जिस किसी अनधिकारी को नहीं देना चाहिए अपितु भक्ति तथा श्रद्धा से सम्पन्न व्यक्ति को ही सदा यह स्तोत्र प्रदान करना चाहिए

मान्यता अनुसार देवी शीतला के दर्शन पूजन और व्रत करने से शीतला देवी प्रसन्‍न होती हैं और अपने व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोड़े, नेत्रों के समस्त रोग, शीतला की फुंसियों के चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं। इनकी पूजा अर्चना में पवित्रता का विशेष महत्व है

शास्त्रों में भगवती शीतला की वन्दना के लिए यह मन्त्र बताया गया है....

वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।

गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूँ। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।

शीतले तनुजान् रोगान्नृणां हसरि दुस्त्यजान्।
विस्फोटककविदीर्णानां   त्वमेकामृतवर्षिणी।।

 हे शीतले! मनुष्यों के शरीर में होने वाले तथा अत्यन्त कठिनाई से दूर किये जाने वाले रोगों को आप हर लेती हैं, एकमात्र आप ही विस्फोटक – रोग से विदीर्ण मनुष्यों के लिये अमृत की वर्षा करने वाली हैं।

वन्देSहं  शीतलां  देवीं  सर्वरोगभयापहाम्।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटकभयं महत्।।

 मैं सभी प्रकार के भय तथा रोगों का नाश करने वाली उन भगवती शीतला की वन्दना करता हूँ, जिनकी शरण में जाने से विस्फोटक अर्थात चेचक का बड़े से बड़ा भय दूर हो जाता है। हे! माता शीतला मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूँ।




✍🏻............अजय शर्मा काशी
नोट- शीतलाष्टक का संस्कृत भाषा में ही पाठ अधिक प्रभावशाली होता है।

पता दशहरेश्वर महादेव, शीतला माता मंदिर प्रांगण डी 18/19 दशाश्वमेध घाट वाराणसी

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