राजीव शंकर चतुर्वेदी
पूर्वांचल राज्य ब्यूरो
बलिया। बैरिया के श्रीनगर निवासी पुष्पेन्द्र सिंह गौतम पुत्र स्व अखिलेश सिंह का सामयिक निधन रविवार को कर्नाटक में हो गया। उनके निधन से पूरा गांव शोक में डूबा हुआ था उनको श्रद्धांजलि देते हुए साथी सुशांत कुमार पाण्डेय उनके बारे में और उनके प्रति अपने दर्द बयां किया। वर्ष 2009 में नागा जी सरस्वती विद्या मंदिर भृगुआश्रम में मिले जब कक्षा 9 में थे हमारी दोस्ती हुई। विद्यालय में एक ही सीट पर पुष्पेन्द्र, श्याम सुंदर और मैं बैठते थे जिस दिन कोई अनुपस्थित होता तो सीट खाली रहती थी। एक दूसरे का खाना आपस में बंटवारा करते थे। 2009 मे ही पुष्पेन्द्र के पिता का बीमारी की वजह से देहांत हो गया और पुष्पेन्द्र के उपर घर की जिम्मेदारी आ गई। फिर हाईस्कूल पास होने के बाद पुष्पेन्द्र सिद्धार्थनगर, मैं प्रयागराज चले गये कुछ महीनों तक कोई संपर्क नहीं रहा फिर एक दिन फोन की घंटी बजती है और उधर से आवाज आई नमस्कार मैं पुष्पेन्द्र सिंह गौतम बोल रहा हूं फिर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था बहुत देर तक बातें हुई और उसके बाद बातों का सिलसिला शुरू हो गया फिर मुलाक़ात भी होने लगी। पुष्पेन्द्र के ऊपर चार बहनों की शादी छोटे भाई की पढ़ाई और घर चलाने की जिम्मेदारी थी जिसे बखुबी निभाते हुए उन्होंने तीन बहनों की शादी और भाई के पढ़ाई का काम पुरा किया। सबकुछ ठीक चल रहा था हमारा मित्रों का समूह भी बढ़ गया पुष्पेन्द्र गुजरात, गुड़गांव जैसे शहरों में नौकरी करने लगे पिछले कुछ समय से वो कर्नाटक के बेल्लारी में जिंदल स्टील में काम कर रहे थे क्रेन आपरेटर के तौर पर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। हर दिन की तरह शनिवार को भी बात हुई फोन पर सबकुछ ठीक चल रहा था तभी रविवार को रात 9 बजे पुष्पेन्द्र के छोटे भाई रंजन का फोन आया और उसने बताया कि भईया नहीं रहें ये सुनकर मैं स्तब्ध रह गया पुरा शरीर शांत हो गया ऐसा लग रहा था दुनिया में सबकुछ रूक गया है फिर मैंने श्याम सुंदर को घर बुलाया गया जब फोटो आया तब मैं फुट फुटकर रोने लगा रात भर नींद नहीं आई दुसरे दिन मैं श्याम सुंदर और राकेश पुष्पेन्द्र के घर गये उनके बड़े पिता नरेन्द्र सिंह जी जैसे हमलोगों को देखे उनके आंख में भी आंसू आ गया । पुष्पेन्द्र की छोटी बहन का रो-रोकर बुरा हाल हो गया था इधर छोटा भाई कर्नाटक पहुचां और सारी औपचारिकताएं निभाते हैं पार्थिव शरीर को सोमवार रात को एंबुलेंस से लेकर चला यहां मैं मेरे दोस्त और उनका पुरा परिवार पुष्पेन्द्र के एक झलक पाने के इंतजार में थे सबका रो-रोकर बुरा हाल हो गया था। पार्थिव शरीर बुधवार सुबह 8 बजे जब घर पहुंचा तो पुरा परिवार चिल्ला कर रोने लगा पुरा गांव दरवाजे पर खड़ा हो कर पुष्पेन्द्र के पार्थिव शरीर को देख उनकी यादों को याद कर आंख नम कर रहा था। मुझे हमेशा साहस देने वाले पुष्पेन्द्र ऐसे शव बनकर लेटे रहेंगे ये सहन नहीं कर पा रहा था मैं हमेशा साथ निभाने की बात करने वाले कंधे से कंधा मिलाकर चलने की बात करने वाले पुष्पेन्द्र को अपने कंधे पर श्मशान घाट ले जाना पड़ा मेरे लिए ये सब अविश्वसनीय था परन्तु अपनी आंखों से पुष्पेन्द्र की चिता जलते देख मानना पड़ा कि हमेशा के हम सबको छोड़कर चले गए। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे और मुझे और उनके परिवार को सहनशक्ति दे।
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🙏🙏😭
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