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पितरों को पाप मुक्त होने का एकमात्र उपाय बोधगया श्राद्ध कर्म


पूर्वांचल राज्य ब्यूरो महाराजगंज

घुघली पल्टू मिश्रा राजाराम गुप्ता



महराजगंज, 17 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हुआ  हैं। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों की आत्‍मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण आदि करते हैं। लेकिन जीवन में पितृ दोष है, तो सिर्फ श्राद्ध से बात नहीं बनती है।शास्त्रों के अनुसार, गया में पिंडदान करना पितरों की आत्मा को मुक्ति दिलाने का सबसे प्रभावी तरीका है।पितृ दोष के कारण आपके जीवन में आने वाली समस्याओं से मुक्ति पाने के लिए गया में जाकर पिंडदान और तर्पण करना अत्यंत आवश्यक है। 

गया जाने का सबसे अच्छा समय पितृपक्ष होता है, जो भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष के 15 दिनों तक चलता है। पितृपक्ष में गया जाकर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उन्हें शांति मिलती है।ऐसा माना जाता है कि गया में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है। गया को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र स्थान माना जाता है।

 गरुड़ पुराण के मुताबिक, भगवान राम ने ही गया में पिंडदान की शुरुआत की थी

 शास्त्रों के मुताबिक, जो लोग पितृ दोष से पीड़ित हैं, उन्हें गया जाकर पिंडदान करना चाहिए। 

 अगर आप गया नहीं जा पा रहे हैं, तो घर बैठे भी पिंडदान किया जा सकता है. इसके लिए पर्यटन विभाग ने ई-पिंडदान ऐप तैयार किया है। 

पितृपक्ष के दौरान श्रद्धा से किए गए श्राद्ध से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 पितृपक्ष में इन नियमों का पालन करना चाहिए: झूठ न बोलना, कपट न करना, एक समय ही भोजन करना, रात्रि भोजन का त्याग करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, गरीबों को भोजन कराना, पशु-पक्षियों को भोजन देना, पितरों को तिल तर्पण करना।

जानिए कि पितृ दोष क्या होता है, इसके लक्षण क्‍या हैं और गया में पिंडदान करने का क्‍या महत्व है? 

 पितृदोष और इसका मतलब 

 पितृ दोष का अर्थ है कि हमारे पूर्वजों की आत्मा अशांत है और उन्हें मोक्ष प्राप्त नहीं हुआ है। जब व्यक्ति के पितर अपने कर्मों या किसी अन्य कारण से मुक्ति नहीं पा पाते, तो उनकी आत्मा संसार में भटकती रहती है।इसका असर उनके वंशजों पर पड़ता है, जिसे हम पितृ दोष के रूप में जानते हैं। पितृ दोष के लक्षणों में आर्थिक समस्याएं, संतान प्राप्ति में कठिनाई, वैवाहिक जीवन में तनाव और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं शामिल होती हैं।

 पितृ दोष के लक्षण

 पितृ दोष होने पर व्यक्तिगत, सेहत और संतान से जुड़ी  समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बार -बार गर्भपात  होना, संतान न होना,  संतान की सेहत का ठीक न होना, आर्थिक तंगी, वैवाहिक जीवन में असंतोष, परिवार में अशांति और लगातार विवाद, बीमारी लगी रहना आदि तरह की समस्याएं बनी रहती है। इन समस्याओं का कारण पितृ दोष हो सकता है, "जिसे शांत करने के लिए गया में पिंडदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है।पितरों को खुश करने के के लिए पूरे एक पखवारे का प्रावधान किया गया है, जिसे पितृपक्ष कहा जाता है.  मान्यता है कि इन 15 दिनों में पितर पृथ्वी लोक में रहते हैं इसीलिए पितरों की पूजा के रुप में पिंडदान, तर्पण, और श्राद्ध जैसे कार्य किए जाते है। गया को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र स्थान माना गया है जहां पितरों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है।ऐसा माना जाता है कि गया धाम में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों तक का उद्धार होता है और व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, गयासुर नामक असुर ने भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त किया था कि उसके शरीर पर यज्ञ करने से पितरों को मुक्ति मिलेगी।तब से यह स्थान पिंडदान और तर्पण के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति पितृ दोष से पीड़ित है, उसे गया जाकर पिंडदान अवश्य करना चाहिए।

गया जी में पिंडदान करने के महत्‍व का वर्णन शास्त्रों में भी किया गया है। शास्‍त्रों में लिखा है—

 जीवतो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरिभोजनात्। 

गयायां पिण्डदानाच्च त्रिभिर्पुत्रस्य पुत्रता॥ (श्रीमद्देवीभागवत ६ । ४।१५)

 यानी कि जीवनपर्यन्त माता-पिता की आज्ञा का पालन करने, श्राद्ध में खूब भोजन कराने और गया तीर्थ में पितरों का पिण्डदान अथवा गया में श्राद्ध करने वाले पुत्र का पुत्रत्व सार्थक है।



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