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श्री गणेश मूलाधार चक्र के पीठासीन देवता हैं ।

 श्री गणेश मूलाधार चक्र के पीठासीन देवता हैं ।


मनुष्य यह नहीं समझ पाता है कि श्री गणेश को मानना माने क्या है ? 

 *श्री गणेश की पूजा करना अत्यावश्यक है । क्योंकि उन्हीं की वजह से सारे संसार में पवित्रता फैली हुई है ।* आज संसार में जो जो उपद्रव हम देखते हैं इसका कारण यही है कि हमने अभी तक अपने महात्म्य को नहीं पहचाना और हम लोग यह नहीं जानते कि हम इस संसार में किस लिए आए हैं और हम किस कार्य में पड़े हुए हैं , हमें क्या करना चाहिए ? इस चीज को समझाने के लिए ही सहजयोग आज संसार में आया हुआ है ।

    श्री गणेश की जो विशेष चार शक्तियां हैं उसमें से जो और भी अतिविशेष है वह है बुद्धि , विवेक ,सुज्ञता ( Discretion ) ये शक्तियां हमारे अंदर प्रज्वलित होने के लिए हमें चाहिए कि हम अपने कुंडलिनी का जागरण करके अपने अंदर के श्री गणेश को संतुष्ट करले ।

   गणेशजी की नाराजगी भी बहुत नुकसानदेह हो सकती है । उनका स्वभाव एक तरफ तो बहुत शांत है , ठंडा है और दूसरी तरफ जब वे देखते हैं कि मनुष्य गलत रास्ते पर चल पड़ा है तो वे उससे इस कदर नाराज होते हैं कि जैसे एक बार पुने में श्री माताजी ने तीन बार कहा था कि आप अगर गणेश जी की स्थापना करके उनके सामने यह गंदे डांस , डिस्को और यह सब गंदे गाने गाइएगा तो गणेश जी जरूर आप पर नाराज हो जाएंगे और भूकंप होगा और वही बात हो गई भूकंप हो गया ।

    अब आपको ध्यान देना चाहिए कि हम कौनसी-कौनसी गंदी चीजो की ओर चलते हैं । पहले परदेसियों को म्लेच्छ कहते थे , माने उनकी इच्छा सब मल की ओर जाती थी लेकिन अब हम लोग भी म्लेच्छ हो रहे हैं । गंदे गंदे पिक्चर हम देखते हैं , गंदे गंदे वार्तालाप करते हैं , जबान से गंदी बातें करते हैं । ये सब गणेश जी को बिल्कुल पसंद नहीं ।

        हमारी भाषा शुद्ध होनी चाहिए और हमारे शौक भी शुद्ध होने चाहिए । हम कोई रास्ते पर पड़े हुए लोग नहीं है । हम भारतीय हैं और भारत में जन्म लेने के लिए अनेक वर्षों की तपस्या चाहिए । अनेक वर्षों के पुण्यों के बाद ही हम भारतवर्ष में जन्म लेते हैं । आपका जीवन ऐसे ही उछली चीजों के लिए नहीं है यह समझने की कोशिश करनी चाहिए । 

     श्री गणेश मूलाधार चक्र के पीठासीन देवता हैं । यह चक्र मूलाधार (जो कुंडलिनी का निवास स्थान है ) के नीचे रीढ़ की हड्डी के अक्ष से थोड़ा बाहर रखा गया है । यह मूलाधार में मौजूद कुंडलिनी की रक्षा करता है जो त्रिकास्थि नामक त्रिकोणीय हड्डी ( sacrum bone ) में मौजूद है। यह चक्र सूक्ष्म शरीर में मौजूद है । इसकी चार पंखुड़ियाँ होती हैं और *यह पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है ।* स्थूल भौतिक शरीर में इसे पेल्विक *( pelvic plexus ) प्लेक्सस द्वारा दर्शाया जाता है ।*  

 *मूलाधार चक्र जो मलोत्सर्जन , गर्भधारणा , जननांगों और यौन गतिविधियों की देखभाल करता है,* संस्कृत भाषा में प्राचीन शास्त्रों में इसका उल्लेख 'षट चक्र भेदन' के रूप में किया गया है , जिसका अर्थ है कि छह केंद्रों (चक्रों) को कुंडलिनी द्वारा छेदा जाना है और सात नहीं, जैसा कि तांत्रिक पंथ द्वारा उल्लेख किया गया है ।

तांत्रिक पंथ ने वकालत की कि कुंडलिनी मूलाधार चक्र में मौजूद है और यौन गतिविधियों की देखभाल करती है। परम पावन माताजी निर्मला देवी के अनुसार यह गलत है और कहीं न कहीं किसी गलती के कारण हो सकता है क्योंकि यहां श्री गणेश के देवता का निवास है, जिन्हें हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार एक हाथी का सिर मिला है। यह संभव ही है कि तांत्रिक पंथ के समर्थकों ने अपनी दृष्टि में हाथी की सूंड का वह भाग देखा हो जो कुण्डलिनी के आकार जैसा दिखता हो , 3-1/2 फेरों में कुंडलित और तदनुसार उन्होंने भगवान गणेश की सूंड को कुंडलिनी समझने की गलती की होगी ? तांत्रिक साहित्य में कुंडलिनी के गलत वर्णन के कारण यह भ्रम दुनिया के अन्य हिस्सों में भी चला गया है । तांत्रिक तकनीक यौन ऊर्जा के दोहन की वकालत करती है।

    *सहजयोग विज्ञान की संस्थापक परम पावन माताजी निर्मला देवी ने बहुत ही कड़े शब्दों में कहा है कि सेक्स का कुंडलिनी जागरण से कोई लेना-देना नहीं है।* "क्या मनुष्य में यह समझने के लिए कोई आत्म-सम्मान नहीं रह गया है कि हम केवल एक सेक्स बिंदु से कहीं अधिक हैं ?" इन तांत्रिक तकनीकों ने नैतिकता के सामान्य नियमों की धज्जियां उड़ाकर मानव जाति को बहुत नुकसान पहुंचाया है और हिंदू समाज की रूढ़िवादी परंपरा के विपरीत हैं । इस तरह इन तकनीकों को बमुश्किल सहन किया गया और बड़े पैमाने पर भारतीय समाज द्वारा इसकी निंदा और अस्वीकृत किया गया।

पश्चिम में अपने समय के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्रायड ने मानव के मानसिक स्तर पर देखी जाने वाली अधिकांश समस्याओं के मूल कारण के रूप में दमित सेक्स की परिकल्पना की वकालत की। हालाँकि वह इसे बहुत दूर ले गया। यह सच है कि यौन दमन स्वस्थ विकास में बाधा डालता है क्योंकि यह वयस्कता की सामान्य शारीरिक इच्छा है । लेकिन अपवित्र अतिभोग बदतर है । इस तरह के अंधाधुंध सेक्स भोग का शुद्ध परिणाम इस युग की सबसे खतरनाक बीमारी यानी एक्वायर्ड इम्यून डेफिसिएंसी सिंड्रोम (एड्स AIDS ) के रूप में सामने आया है, जिसका अभी तक कोई इलाज नहीं है । सेक्स को दबाया नहीं जाना चाहिए । यह एक सामान्य इच्छा है । इस इच्छा की पूर्ति के लिए पुरुष को विवाह कर लेना चाहिए और अपनी पत्नी के साथ ही संभोग करना चाहिए । एक महिला के साथ आजीवन विवाह में ही बुद्धिमानी है । क्योंकि विवाह समाज की सामूहिक स्वीकृति है और इसमें बच्चों के समुचित विकास के लिए सुरक्षा व्यवस्था अंतर्निहित है।

 *मूलाधार चक्र भगवान श्री गणेश की अध्यक्षता वाले सबसे नाजुक और सबसे शक्तिशाली चक्रों में से एक है , जो मां कुंडलिनी को जगाने के सही समय के बारे में सूचित करता है ।* उन्हें धर्म के अवतार के रूप में पूजा जाता है , जो पूर्ण ज्ञान और मासूमियत का स्रोत है । इसके अनेक आयाम हैं । *इस चक्र के विकास के लिए पवित्रता की भावना आवश्यक है ।* *व्यभिचार , अश्लीलता , तांत्रिक साधना ( काली विद्या ) , वासनापूर्ण ध्यान , मादक पदार्थों का सेवन , इस चक्र को बिगाड़ देता है ;* व्यक्ति का संतुलन बिगड़ जाता है और उसकी याददाश्त और ज्ञान बिगड़ने के लक्षण दिखने लगते हैं । सही दिशा का बोध खो देता है । इससे मानसिक अशांति भी होती है । *प्रोस्ट्रेट ग्रंथि में ( prostate gland ) के रोग और एड्स ( AIDS ) , बवासीर ( piles ) , कर्करोग ( जैसे prostate cancer ) जनन संस्था के रोग - जैसे कि यूटेराइन फाइब्रॉयड ( uterine fibroid ) , बच्चों में सर्वांगीण विकास का न होना , भी मूलाधार चक्र के खराब होने के कारण होते हैं ।* हालाँकि, एक समझदार विवाहित जीवन और नैतिकता के सामान्य नियमों का पालन करने के साथ यानी पवित्र शास्त्रों में वर्णित धार्मिक जीवन शैली का पालन करते हुए , मूलाधार चक्र मजबूत हो जाता है और सहजयोग तकनीक से जागृत हो जाता है । जागृत मूलाधार चक्र निर्भयता , धर्म की शक्ति, प्रलोभनों और उत्तेजना पर प्रभुत्व, दूसरों को आविष्ट करने वाली आत्माओं पर विजय , संतुलन ,सद्भाव, ज्ञान, सही दिशा की आंतरिक भावना, मासूमियत, आत्मविश्वास और पवित्रता दिलाता है । इसकी चुंबकीय शक्ति काम करना शुरू कर देती है और बदले में यह मूलाधार में मौजूद कुंडलिनी को उठने और चढ़ने का निर्देश देती है । कुंडलिनी षट चक्रों को भेदती है और एक व्यक्ति को आत्म-साक्षात्कार देने वाली सभी व्यापक ब्रह्मांडीय चेतना के साथ एकजुट होती है ।

     आप अपने मूलाधार चक्र में बैठे श्री गणेशजी को जागृत करने के लिए , अपने मूलाधार चक्र को मजबूत बनाने के लिए , अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने और सहजयोग से संबंधित अधिक जानकारी निम्न साधनों से प्राप्त कर सकते हैं । यह पूर्णतया नि:शुल्क ( free ) है । 

टोल फ्री नं – 1800 2700 800 वेबसाइट‌ - www.sahajayoga.org.in 

जय श्री माताजी ।

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