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काशी के विद्वतजनों ने भरी हुंकार, बंद हो मसाने की होली

काशी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री को लिखा पत्र


✍🏻 *कृष्णा पंडित की कलम से*

*श्रीअविमुक्त-महाक्षेत्र आनंद-काननवन "काशीढूंढे"*

*अविमुक्त "काशी" ही परम ज्ञान है। अविमुक्त काशी ही परम पद है। अविमुक्त काशी ही परम तत्व है और अविमुक्त काशी ही परम शिव है--*

*हे देवि ! पूर्व जन्म से जो पाप संचित रहता है, वह इस अविमुक्त क्षेत्र काशी में प्रवेश करने मात्र से ही नष्ट हो जाता है और तीर्थसेवी भक्त जन अविमुक्त क्षेत्र काशी शिवपुरी को प्राप्त करके भगवान अविमुक्तेश्वर के दर्शन से ही ब्रह्महत्या के पापों से छूट जाते हैं--*

*इस अवमुक्त क्षेत्र‍-काशी में साक्षात् शंकर जी जीव को मरण समय में तारक ब्रह्म मन्त्र का उपदेश देते हैं। इस प्रकार की मोक्षदायिनी यह काशीपुरी अविमुक्त नाम से प्रसिद्ध है*

*काशी के बिना सारे साधन मोक्ष मार्ग में विघ्न ही सिद्ध होते हैं, क्योंकि काशी निर्विघ्न की जननी और मोक्ष की उत्तम खान है और काशी धन्यतमा एवं पुण्यरूपा उत्तम नगरी है,जो गंगा जी से शोभायमान हैं । यहाँ यह मणिकर्णिका उत्तम सुख देने वाली है, क्योंकि मुक्ति उसकी दासी है*

*मणिकार्णिका सीमा के तट पर विद्यमान जलासेनी घाट महाश्मशान भूमि है, इस अविमुक्त वाराणसी क्षेत्र,आनन्द वन, महाश्मशान में गौरी मुख त्रिकण्टक विराजते है*

*हे मणिकर्णिके! आप के तट पर भगवान विष्णु और शिव सायुज्य मुक्ति प्रदान करते हैं. (एक बार) जीव के महाप्रयाण के समय वे दोनों (उस जीव को अपने-अपने लोक ले जाने के लिए) आपस में स्पर्धा कर रहे थे. भगवान विष्णु, शिवजी से बोले कि यह मनुष्य अब मेरा स्वरुप हो चुका है. उनके ऎसा कहते ही वह जीव उसी क्षण भृगु के पद-चिन्हों से सुशोभित वक्ष:स्थलववाला तथा पीताम्बरधारी होकर गरुड़ पर सवार हो उन दोनों के बीच से निकल गया--*

*यहां काशी में मनुष्य के मरण समय में भगवान शिव उस प्राणी को अपनी गोद में रखकर तारक मंत्र का उपदेश करते हैं और माता विशालाक्षी गौरी ( पार्वती) कस्तूरी की गंध से सुगंधित अपने आँचल की वायु से उसकी मरण समय कि व्याकुलता दूर करती है*

*काशी में रहकर जो व्यक्ति सत् शास्त्रों का चिन्तन, सत्पुरुषों की सङ्गति, भग्वन्निष्ठ सद्बुद्धि, निरन्तर सत्यभाषण और सदाचारों का अनुपालन इन पाँच सकारों का सेवन करता हैं,उसे पञ्चभौतिक देह छोड़ते हुए मरण- काल में कोई कष्ट नहीं होता और यह स्थान भगवान् विष्णु की विश्राम-भूमि और शिव की भी विश्राम-भूमि है--*

*श्मशान शब्द का निर्वचन करते हुए शब्द और अर्थ के विद्वानों द्वारा श्म शब्द का अर्थ शव और शान का अर्थ शयन कहा गया है और जो प्रलय काल के उपस्थित हैं ने पर भूत अर्थात् जीव महत् तत्त्व को प्राप्त करते हैं। शव रूप में जीव के शयन करने के कारण यह श्मशान है*

*माता पार्वती पूछती है,आपको यह शमशान क्यों इतना प्रिय है?? तब देवाधिदेव महादेव कहते- हे पार्वती! मैं सदा पवित्र स्थान ढूंढने के लिए सारी पृथ्वी पर दिन- रात विचरण करता रहता हूं। लेकिन मुझे श्मशान से बढ़कर कोई दूसरा पवित्र स्थान नहीं दिखता है। इसलिए श्मशान में मेरे मन को शांति मिलती है और मसान में आने जाने वालो के मुख से राम नाम सत्य है सुनकर मुझे अत्यंत प्रसन्नता होती है और जीव के शव जल जाने के उपरांत राख में भी मुझे राम ही दिखते है*। उसी राम नाम के बल से में जीव को जीवन मरण के चक्र से मुक्त कर देता हूं और काशी के महाश्मशान में तो मैं *हे सुव्रत ! सायुज्य मुक्ति तो मात्र काशी में ही प्राप्त होती है । अन्यत्र तो सान्निध्यादि मुक्ति प्राप्त होती है । जो सायुज्य मुक्ति अन्यत्र परम दुर्लभ है, वह भी काशी में अनायास ही प्राप्त हो जाती है*

*काशी के श्मशान में अन्य श्मशानों की अपेक्षा पंचमहाभूत, तीनों सूक्ष्म शरीर प्रलय में निर्मूल होकर पंचतत्व में विलीन हो जाते हैं। इसलिए इसे महाश्मशान कहा गया। यह महाश्मशान केवल शरीरी को नहीं वरन् अशरीरी से भी मुक्ति देता है‌-- 'काश्यां मरणान् मुक्तिः।।* 

*काशी के पग पग तीर्थ धर्ममर्यादा के पालन में भगवान श्रीहरि विष्णु जी नित्य स्वर्ग से आकर गरुण जी को काशी की सीमा पर छोड़ पैदल मणिकार्णिका स्नान को जाते हैं। जिस काशी के महाशमशान में शांति प्राप्त करने हेतु भगवान शिव मनुष्यों को राम नाम के बल से सायुज्य मुक्ति प्रदान करते हैं। उसी पवित्र मसान भूमि पर विगत 6 वर्षो डीजे पर "होली खेले मसाने में" बजाकर शराब बीयर के नशे में हुरदंग कर रहें हैं और मृतकों के शव को मनोरंजन का साधन बनाया जा रहा है* 

जिसे देख काशी के विद्वानों का मौन होना उचित नहीं है अतः आपसे निवेदन है कि सनातन समाज हित में उचित निर्णय लेने की कृपा करे 

*काशी में देवस्थानों, देवतीर्थों की धर्ममर्यादा का उल्लंघन करने वालों को स्मरण करना होगा कि जैसे कोई व्यक्ति अपने पैर से अपने सिर की छाया का उल्लंघन नहीं कर सकता वैसे ही इन सर्वोत्कृष्टा पराशक्ति का कोई उल्लंघन नहीं कर सकता।*

*महर्षि वेदव्यास जी ने कहा है-- जो काशी धर्म की जननी है। जो काशी मोक्ष प्रदान करने वाली है। जो काशी पापों का क्षय करने वाली है ऐसी काशी से द्रोह करने वाला अर्थात् उसकी मर्यादाओं का हनन करने वाला निश्चय ही अधम होगा*।

*मुक्ति प्रदायिनी काशी के विषय में यहां तक कहा गया है कि धर्म ही बाण है, कलियुग ही लक्ष्य है। ऐसे विशिष्ट धनुष को धारण करने वाले शिव की त्रिशूल पर स्थित काशी देहधारियों को तीनों ऋणों से मुक्त करती है।*

मुक्ति प्रदायिनी काशी के विषय में यहां तक कहा गया है कि-धर्म ही बाण है, कलियुग ही लक्ष्य है। ऐसे विशिष्ट धनुष को धारण करने वाले शिव की त्रिशूल पर स्थित काशी देहधारियों को तीनों ऋणों से मुक्त करती है

*काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद्* अध्यक्ष प्रो. नागेंद्र पांडेय, *काशी विद्वत परिषद्* महामंत्री श्री राम नारायण द्विवेदी , *काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के पूर्व अध्यक्ष एवं *काशी कर्म काण्ड परिषद्* अध्यक्ष आचार्य श्री अशोक द्विवेदी , *अखिल भारतीय विद्वत परिषद्* अध्यक्ष श्री कामेश्वर उपाध्याय, *आदिमहादेव काशी धर्मालय मुक्ति न्यास के संस्थापक श्री रामप्रसाद सिंह , *काशी घाटवाक् संस्था* प्रमुख डा. श्री विजय नाथ मिश्र ,*धर्म शास्त्र विभाग संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय* प्रोफेसर श्री माधव जनार्दन रटाटे

*अखिल भारतीय संत समिति* महामंत्री स्वामी श्री जितेंद्रानंद सरस्वती महाराज !

तीर्थपुरोहित महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री कन्हैया त्रिपाठी एवं अजय शर्मा काशी प्रदेश अध्यक्ष केंद्रीय ब्राह्मण महासभा उत्तर प्रदेश ,आदर्श पत्रकार संघ राष्ट्रीय अध्यक्ष /पूर्वांचल राज्य हिंदी दैनिक अखबार संपादक कृष्णा पंडित !!

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