कलम के सिपाही भी नहीं रहे पीछे खाकी से, खादी ने तो कमाल मचाया ही है पत्रकार भी रुतबा बढ़ा रहे हैं...
पूर्वांचल राज्य ब्यूरो, वाराणसी (प्रधान संपादक ✍🏻 कृष्णा पंडित की कलम से)
आज एक ऐसा सच जो कहीं ना कहीं माकूल जवाब दे रहा है उन सामाजिक चेतक बन आसमानी तरंग लिए नई उमंग के साथ रीति रिवाज से परहेज करते हुए सामाजिक कुप्रथा को संचालित करने का बेड़ा उठाए सुलतानों को जो देखते ही देखते खाट से सीधे ठाट तक पहुंच गए !
जहां एक तरफ खादी वालों ने संसाधन के लिए सब कुछ रौंदते हुए सिर्फ अपनी रूतबे का विकास किया वही खाकी वर्दी के जिम्मेदार हुक्मरानों ने तो कानून को ही अपना हथियार बनाकर जनमानस के साथ उनकी दबी , कुचली आवाज को और कुचल देने की भी जिम्मेदारी उठा ली है !निश्चित तौर पर कलम के सिपाही भी पीछे नहीं रहे जहां दर्पण के रूप में पत्रकारिता बिना किसी भेदभाव लांग लपेट सच दिखाकर आईना के रूप में लोगों के लिए जीवन दान और भ्रष्टाचारियों के मुंह पर जोरदार तमाचा देते हुए चौथे स्तंभ की बुनियाद के साथ सम्मान को सुरक्षित रखने का कार्य करते थे ! वही आज चंद सिक्कों की खनक से कोठे की पेशेवर नायिका के रूप में लोगों को आनंद व कुप्रथा के प्रचलन में मुख्य सहायक के रूप में पहचान बना रहे हैं ! बड़े-बड़े चैनलों और प्रिंट मीडिया के बेताज बादशाह जाने-जाने वाले दरवाजे पर खड़े दरवान के रूप में भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहे ! कोई लोभ मद,लालच में सब कुछ गवां रहा है तो कुछ लोग सिर्फ मात्र अपनी विकास और लोगों की पीछे चलकर खुद की पहचान के लिए मीडिया प्रबंधन का भरपूर प्रयोग कर रहे हैं ! जबकि चाहे खादी में नेताजी हो या खाकी में साहेब जिम्मेदारी उनकी समाज सुरक्षा संरक्षण के साथ चहुओर विकास की बुनियाद को आम जनता तक प्रभावित कर लोगों के घरों में रोशनी बांटने का है ! लेकिन क्या कहा जाए 21वीं शताब्दी में जहां तकनीकी युग का अपना प्रभाव है वहां कुछ मानसिक अपंग जिनकी नियति कमजोर लाचार असहाय के साथ खेलने का है और खुद को उसके सामने मजबूत बनकर कूटनीति के लिए संसाधन रूपी उपहार बढ़ाने का दौरा चल रहा है ! कोई सत्ता पाने की मद में फ्री का नुमाइश प्रदर्शनी लगाकर जनमानस को बेवकूफ बना रहा है तो कुछ लोग धर्म को ही हथियार बनाकर सड़े राजनीति की विसात को अमली जामा पहना रहे हैं ! प्रशासनिक अधिकारिओं को जो अपने ही तलवे चाटने को मजबूर हो रहे हैं !
जब कभी अपराध,आतंक बढ़ेगा तो उंगली तो उन्ही ठेकेदारों पर उठेगी जो निश्चय ही जवाब के ज़िम्मेदार हैं !
आज सरकारी व्यवस्था और अधिकारी निरूतर....
एक नई चलन देखने को मिल रहा है की जिम्मेदार से यदि आप उनके जिम्मेदारी का एहसास और कारण पूछते हैं तो वह साहब और नेताजी दोनों उलूल,जूलूल हरकत के साथ घटिया मानसिकता दर्शाते हुए खुद को प्रबंधन का राजा और सरकार के दामाद बन बैठे हैं जबकि वह सिर्फ नौकर मात्र हैं समाज का !
अक्सर देखा जाता है कि बड़े-बड़े अधिकारी सिर्फ अपने शानदार कार्यालय में बैठकर बड़ी रुतबे के साथ आदेश व हुकुम बजाते हैं वाराणसी के एडीजी से लेकर कमिश्नर तक व अन्य जिलों में भी विभाग में तैनात अधिकारी खुले में शोर मचा रहे हैं अर्थात सिर्फ खानापूर्ति और मनसूबे को अंजाम देने में जुटे पड़े हैं ! मजाल है कि न्याय के लिए दर-दर भटकता व्यक्ति साहेब से उम्मीद लिए उन तक पहुंच बात रख सकें!
कई विधायक मंत्री नेता अधिकारियों से मिलावट के साथ खूब वाहवाही लूट रहे हैं जबकि जनता बादल और परेशान है सरकार को जो सूचना मिलती है उसे तरीके से सरकारी आदेश जारी होता है ज्यादातर वाराणसी जैसे शहर जहां देश के प्रधानमंत्री मोदी जी सांसद हैं वहां ट्रैफिक का कोई सॉल्यूशन नहीं नही किसी मानक के तहत व्यवस्था का संचालन किया जा रहा है अवैध स्टैंड अनगिनत हैं और तो और मादक पदार्थों का सेवन और बिक्री में भी शहर अब्बल दर्जे में पहुंचने को बेकरार है लेकिन बड़े-बड़े अधिकारी सुरमा बन ताल ठोक रहे हैं !
क्राइम ब्रांच और गुप्त सूचना विभाग अन्य एजेंसी भी अपनी मनमानी से दुकान चला रही हैं...
वर्तमान के दिनों में जहां धर्म संरक्षण और न्यौता के नाम पर बेड़ा पार हो रहा है वही भ्रष्टाचार श्रृंगार बन कानून का माखौल उड़ा रहा है ! देह व्यापार ,स्पा व जुआ का खेल ने तो कामयाबी की नई बुलंदी तय कर घर-घर में रोशनी बिखेरने का कार्य जोरों पर है !
जिसके पास कोई जवाब नहीं उनके ही आला अधिकारियों की बजा दिया जा रहा है !
...तो कौन सुध लेगा हमारी आपकी और बेहाल जनता का...
यह सही है कि यदि इंसाफ और न्याय की लड़ाई के लिए नियत साफ है तो निश्चित तौर पर कामयाबी मिलती है ! यदि ठान लिया जाए की कुछ करना है तो उसे रास्ते पर चलते रहना होगा समाज सबको सम्मान देता है बस आपको समाज के लिए कुछ करने की जरूरत है ! मैं यह नहीं कहता कि सभी लोग एक ही तराजू के बटखरे हैं लेकिन जब चलन में दूषित वातावरण और भ्रष्टाचार पनफ रहा हो तो लोग रिश्तों से परहेज करते हैं ! आज बड़े ही नेक व साहसी अधिकारिओं को भी शर्मिंदा होना पड़ता है और कहीं ना कहीं उनकी जमीर उनको कोसती है !
" हिस्ता चल ज़िदगी ,
अभी कई कर्ज चुकाना बाकी है..
कुछ दर्द मिटाना बाकी है
कुछ फर्ज निभाना बाकि है"...
"रफ़्तार में तेज चलने से
कुछ रूठ गए कुछ छूट गए
रूठों को मनाना बाकी है
रोते को हंसाना बाकी है "
आज एक सच जो समाज का दर्पण होकर खुद ही टूटती हौसलों का परिंदा है की कल कैसा हो ! आज जिंदगी का अंतिम हो लेकिन सच अपनी कलम की साख हो... जिसको यह मंजूर नहीं समाज में कोई रोए यह कलम दस्तूर नहीं .......
"कुछ हसरते अभी अधूरी है
कुछ काम भी और जरूरी है
जीवन की उलझ पहेली को
पूरा सुलझाना बाक़ी है "
.......✍🏻 फिर कभी किसी मुद्दे के साथ कृष्णा पंडित की कलम से 🙏🏻
2 Comments
एक दम सटीक, व्याख्यान आप ने अपनी कलम से मन-मस्तिष्क पर उकेर दिया है! सर आप को धन्यबाद
ReplyDeleteसर आपका यह लेख हमारे समाज को नई दिशा देगी इसमें संदेह नहीं है
ReplyDeleteसादर प्रणाम