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कार्यक्रम आख्या विश्व पर्यावरण दिवस


 कार्यक्रम आख्या

 विश्व पर्यावरण दिवस

राजीव शंकर चतुर्वेदी

पूर्वांचल राज्य ब्यूरो

 बलिया। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आज दिनांक: 05 जून 2025 को अपराहन 2:30 बजे श्रीराम बिहार कॉलोनी (डॉ गणेश पाठक जी का आवास), बलिया में “पर्यावरण संरक्षण में भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान परम्परा की भूमिका” विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की अराधना के साथ हुआ।

    शिक्षक संघ के अध्यक्ष अनिल पांडेय ने कहा कि भारत का संविधान अपने नीति निदेशक तत्व के माध्यम से हमें पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रेरित करता है। जलवायु पत्रिका के संपादक डॉ. पवन गौतम ने बताया कि हमें पर्यावरण संरक्षण संबंधी औपचारिकताओं से आगे बढ़कर गांवों की पर्यावरण संरक्षण संबंधी जीवन पद्धति को अपनाने की आवश्यकता है। अरविंद शुक्ल ने बताया कि किसी भी समस्या के सुधार का प्रारंभ स्वयं में सुधार से होना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण से संबंधित अनेकों मान्यताएं भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान परंपरा में प्रारंभिक समय से ही मौजूद रही है जिसे आज के वैज्ञानिक युग में भी प्रमाणित माना जाता है।

    डॉ. अभिषेक अर्ष, प्राचार्य, कमला देवी बाजोरिया डिग्री कॉलेज ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण के संदर्भगत गांधी जी ने हमें सचेत किया था कि प्रकृति मनुष्य की आवश्यकताओं की तो पूर्ति कर सकती है लेकिन मनुष्य का अंतहीन लालच पर्यावरण संबंधी समस्याओं के केन्द्र में है।

    कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. बी.एन. पाण्डेय, प्राचार्य, सतीश चन्द्र कालेज ने अपने उद्बोधन में बताया कि तीव्र जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण तथा इसी क्रम में मनुष्य की उपभोक्तावादी प्रवृत्ति ने पर्यावरण संबंधी अनेकों समस्या को उत्पन किया है। समाज में प्लास्टिक के उपयोग की प्रवृत्ति को हमें संकल्पपूर्वक समाप्त करना होगा ।‌ सामान्य जन की पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली एवं निरंतर उन्नत हो रहे तकनीकी विकास में यह अपार क्षमता है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को एक नई दिशा मिल सकें।

डॉ. गणेश पाठक ने बताया कि हमारी लोकरीतियां, परंपराएं हमें हमेशा से पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती रहीं हैं। लेकिन खेद की बात है कि हम उसे भूलते जा रहे हैं। आज आवश्यकता इस बात कि है कि हमें अपने इस परंपरागत लोकजीवन पद्धतिशास्त्र को संरक्षित किया जाय। भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान परंपरा को वास्तविक मायने में आत्मसात करने की आवश्यकता है ।

    सरयां निवासी मनीष पांडे ने बताया कि भारतीय संस्कृति के विकास के प्रत्येक चरण में प्रकृति का महत्व रहा है तथा हमारी सांस्कृतिक ज्ञान परंपरा में वृक्षों की पूजा करने एवं उनको संरक्षित करने की परंपरा रही है। प्राध्यापक हरेंद्र मिश्र ने बताया कि हमारी संस्कृति में एक वृक्ष का महत्व दस पुत्रों के समान माना गया है। डॉ. रितेश सोनी, वरिष्ठ फिजिशियन, जिला चिकित्सालय, बलिया ने बताया कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह है कि पर्यावरण संरक्षण की विधि को अपने स्वयं के जीवन शैली में शामिल किया जाय। कृष्ण कुमार सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि वृक्ष लगाने के साथ-साथ उसका संरक्षण भी हमारा लक्ष्य होना चाहिए। डॉ. बृजेश तिवारी ने पर्यावरणसेवी स्व. जय सिंह चतुर्वेदी, दुबे छपरा के पर्यावरण संरक्षण संबंधी प्रयासों के उदाहरण के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के महत्व को बताया। डॉ . विवेकानंद देव पाण्डेय ने बताया कि हमारी संस्कृति कृषि प्रधान रही हैं तथा इसके मूल में पर्यावरण संरक्षण रहा है। पर्यावरण संरक्षण संबंधी चेतना के दृष्टांत वैदिक संस्कृति के समय से ही प्राप्त होते हैं। जेएनसीयू के शोध छात्र समीम अंसारी ने बताया कि मनुष्य एवं पर्यावरण के बीच समरसता संबंधी तारतम्यता को अपनाने तथा मानव के लालच की प्रवृत्ति को तिलांजलि देने की आवश्यकता है।

     समग्र विकास एवं शोध संस्थान, बलिया द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. ऋषिकेश पाण्डेय, पूर्व विभागाध्यक्ष – रसायन विज्ञान विभाग, सतीश चन्द्र कालेज, बलिया ने किया तथा कार्यक्रम का संयोजन - डॉ० अनिल कुमार तिवारी , असिस्टेंट प्रोफेसर – भूगोल (कमला देवी बाजोरिया डिग्री कॉलेज) , विभाग प्रमुख- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, बलिया के द्वारा किया गया। इस अवसर पर डॉ. गणेश पाठक, डॉ. बी.एन. पाण्डेय, प्राचार्य, सतीश चन्द्र कालेज, डॉ. अभिषेक अर्ष, प्राचार्य, कमला देवी बाजोरिया डिग्री कॉलेज, श्री करूणानिधि तिवारी, शिक्षक संघ के अध्यक्ष श्री अनिल पांडेय, डॉ. भगवान जी चौबे, डॉ. अंबुज, डॉ. पवन आदि गरिमामयी उपस्थित रही।

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