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अस्पताल बदहाल साहब खुशहाल

फ्रीजर मशीने बहुत दिनों से पड़ी है खराब, मोर्चरी मशीन के बावजूद जमीन पर रखी जाती है डेड बॉडी

चाक चौबंद व्यवस्था के नाम पर उगाही और खानापूर्ति



पूर्वांचल राज्य ब्यूरो, वाराणसी (प्रधान संपादक कृष्णा पंडित की कलम से)

वाराणसी।  स्वास्थ्य महकमा की बदहाली उत्तर प्रदेश में अपनी नई कहानी लिखने को तैयार है चाहे जितने भी कोशिशे सरकार द्वारा कर लिए जाएं लेकिन जब तक काम करने वाले कर्मचारियों की नियत और कार्यशैली में उदारता का भाव नहीं आएगा तब तक स्वास्थ्य विभाग का बादल चेहरा आम जनमानस के लिए और कुरूप नजर आता रहेगा ! जहां आज 21वीं शताब्दी में प्राइवेट अस्पताल सुविधा के साथ अपनी संसाधनों को भी बढाते हुए लोगों की छोटी से छोटी इलाज और उनकी जरूर की सारी व्यवस्था उपलब्ध करा रही हैं वहीं दूसरी तरफ सरकारी बदहाल अस्पतालों का दुर्दशा देखकर सरकार की व्यवस्था पर आमजन को रोना आ रहा है !



बात करतें हैं शिवपुर के सामुदायिक चिकित्सालय की बदहाली पर रख-रखाव के अभाव में खस्ताहाल पोस्टमार्टम हाउस की व्यवस्था जहां सिर्फ मात्र अपनी ड्यूटी निभाई जा रही है खाना पूर्ति हेतु लेकिन लोगों को स्वास्थ लाभ के लिए कोई सफल कोशिश नहीं किया जाता !


वाराणसी। शिवपुर के सामुदायिक चिकित्सालय परिसर में सात वर्ष पूर्व बना आधुनिक शवगृह अब सिर्फ मृतक के परिजनों से अवैध वसूली का अड्डा बन कर रह गया है ! यही नही यह पोस्टमार्टम हाउस 2017 में बना और पांच वर्ष के लंबे अंतराल के बाद वर्ष 2022 में इसमें पोस्टमार्टम होना शुरू हुआ। मगर हालात यह है की यह अब बदहाली के आंसू बहा रहा है ! बताते चलें कि पोस्टमार्टम के बाद लावारिस लाशों को सुरक्षित रखने के लिए इसमें आठ मोर्चरी फ्रीजर बॉक्स बने हैं।जो कई महीनो से खराब पड़े हैं। स्थिति यह है कि पोस्टमार्टम को लाये गये शवों जमीन पर रखा जाता है जिसमें चूहे दौड़ते रहते हैं। वहीं अगर मौसम गर्मी का हो तो लाशों में सड़न ने होना शुरू हो जाता है साथ ही दुर्गंध से शव पोस्टमार्टम कराने आये लोगों की हालत खराब हो जाती है।जब यहां  शवो को लाया जाता है तब यहां तौफीक नाम का व्यक्ति पोस्टमार्टम हाउस लाश ले जाने निकालने के नाम पर वसूली का खेल खेलता है। दरअसल प्राइवेट कर्मियों से लाशों से वसूली का खेल पोस्टमार्टम के जिम्मेदारो के सह पर होना बताया जाता है। देखा जाए तो सम्वेदनाओं को तार-तार करते हुए वसूली ऐसे वक्त में हो रही होती है जब परिवार पर दुखों का पहाड़ टूटा होता है और उनसे आते ही शव अंदर ले जाने के लिए और प्लास्टिक में पैक करने  के लिए ₹1500 की मांग आरंभ हो जाती है। जबकि मुर्दाघर की दीवारों पर पोस्टर लगे हैं। यहां तक की शिकायत के लिए मोबाइल नंबर भी दिया गया है। परंतु शिकायत करने पर मात्र कोरम पूरा कर मानवता को शर्मसार किया जाता है। और तो और यहां जल्दी पोस्टमार्टम करने के लिए भी धनउगाही की जाने की बात चर्चा में है।


कार्य सुबह 10:00 बजे से आरंभ हो जाना चाहिए मगर जिम्मेदार अपराहन 1:00 तक पहुंचते हैं। देखा जाए तो यह चंद रुपयों के लिए प्रधानमंत्री के इलाके में जबरदस्त मजाक उड़ाया जा रहा है दिए गए निर्देशों का जहां योगी मोदी जी खुद को सबसे बेहतर साबित करने के लिए मेहनत के साथ-साथ सुविधा मौर्य कर रहे हैं वहीं यह लोग मनमानी कर मट्टी पलीत कर रहे हैं !


सीएमओ से जब इस बाबत बात की गई तो उन्होंने कहा कि अभी मरम्मत का कार्य चल रहा है और ऐसी कोई बात नहीं है जबकि वहां जिम्मेदार पद पर बैठे डॉक्टर कमलेश कुमार यदि कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति उनसे इस बाबत बात करता है तो सीधे उनका जवाब होता है कि आप सीएमओ साहब से बात कीजिए यह कितना गैर जिम्मेदार हरकत है आप खुद समझिए और सोचिए !!



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